आज की दौड़-भाग भरी जिंदगी में हम सब खुल कर जीना ही भूल गए है और ना जाने कितने तनाव को साथ ले कर घूम रहे है कुछ हम अपने लिए भी जिये थोड़ा ही सही पर खुल कर जिये... हम बंधे हुए से है जाने कब आज़ाद होंगे.. चल एक बार ही सही जिंदगी आज़ाद होते है.. स्कूल की ड्रेस से,कॉलेज की बैंच से, रिश्तो के धागों से,मोह के मायाजाल से, प्यार और अहसास के झूठे वादों से.. भागती-दौड़ती जिंदगी में,खाने-कमाने की होड़ से.. एक लम्हा चल हम आज़ाद होते है.. जिन्हें हम नहीं जानते उनके साथ भी हँसते है.. हम बंधे हुए से है जाने कब आज़ाद होंगे.. चल एक बार ही सही जिंदगी आज़ाद होते है.. समाज की बेड़ियो से,लोक-लाज-शरम की निगाहों से.. हम बंधे हुए से है जाने कब आज़ाद होंगे.. चल एक बार ही सही जिंदगी आज़ाद होते है.. कभी बटन कुर्ते के खोल कर..पैरो को जूतों से आज़ाद हम करते है बालो को ऐसे ही झूमने देते है..मुह धोने का झंझंट भी खत्म करते है... दांतो को कहा साफ़ करना कुछ दिन ऐसे ही जी कर देखते है.. सारी डखोसले-बाज़ी से अपने आप को आज़ाद करते है.. हम बंधे हुए से है जाने कब आज़ाद होंगे.. चल एक बार ही सही जिंदगी आज़ाद होते है.. ...
फेसबुक की वाल पोस्ट से इस सपने की दुनिया तक आना यकीनन बहुत ही मजेदार रहा है जब कॉलेज में हुआ करता था तब शायद अच्छा शायर हुआ करता था..पर जिंदगी मे हुये कुछ अनचाहे बदलावो ने जिंदगी कब एक लेखक की कलम में बदल दी समझ ही नही पाया,जब भी वक्त मिलता है वहीं लिखता हूँ जो मन मे होता हैं कभी लोगों की प्रतिक्रिया देख कर नही लिखा अच्छा या बुरा सब कुछ इस किताब के पन्नों में जिंदगी के खट्टे अनुभवों के साथ परोस रहा हूँ,ये सब कहानियाँ कहीं ना कहीं युवाओं की कहानियों से मेल खाती नजर आयेंगी हर तरह से कोशिश की है..