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Showing posts from June, 2017

स्कूल का पहला दिन

स्कूल का पहला दिन अमूमन बहुत ही कम उम्र में देखने को मिलता है..जब हमे शायद ठीक से तारीख,वार,समय तक याद नहीं होता,याद होता है तो बस धूल भरी सड़को पर भागते रहना,दिन भर बिना थके खेलते रहना,मम्मी से आइसक्रीम की जिद्द करना,पापा के कंधो पर बाजार जाना,दादा-दादी से कहानियाँ सुनना..लेकिन स्कूल का पहला दिन जहन में एक ना मिटने वाली तस्वीर का तरह हमेशा रह जाता है..वो दिन जिस समय हम अपने माँ-पापा की उँगली छूटने से डरते है..अपनी शैतानियों को खुल करने की बजाय १५*३० की क्लास में करने की सोचते है,टीचर के हाथो की पिटाई को याद रखने की कोशिश करते है..ऐसा ही कुछ मेरा भी पहला दिन था स्कूल में जुलाई की पहली तारीख साल १९९५ का था साल इसलिए भी याद रहा क्योकि इसी साल में मुझे छोटा भाई मिला था..तैयारी किसी जंग पर जाने जैसी चल रही थी..मम्मी की मनपसंद चीजों को मेरे लिए लाया जा रहा था..टिफिन,बॉटल,बेग, लेकिन एक चीज से बहुत नाराज थे,मेरे स्कूल की यूनिफार्म बहुत ही खराब लगी थी उन्हें..लेकिन फिर भी उन्होंने उसे नज़रअंदाज़ किया क्योंकि गांव में एक मात्र स्कूल ही था..सुबह हो गयी थी बेग तैयार था और मम्मी भी,मुझे पहली बार उन

माना की तुम यार नहीं........शिवराज अकेला ही काफी है.

माना की तुम यार नहीं........शिवराज अकेला ही काफी है..शिवराज किसानो का है..शिवराज आम जनता का है..पिछले १० बरस में कभी तन्हा नहीं देखा तुम्हे आज इस तरह देख कर बेबस हूँ..तुम बहुत हिम्मती हो मेरे दोस्त तुम बहुत जज्जबाती हो..तुमने पिछले बीते सालो में अपनी पूरी कोशिश की है प्रदेश को उन्नति पर ले जाने की,तुमने हर असंभव काम को पूरा किया है..हम सब मानते है तुमने कोई कोर कसार नहीं छोड़ी प्रदेश को आगे ले जाने की..तुम्ही हो जिसने प्रदेश में बड़े बड़े उद्योगपतियों को आने पर विवश किया..लेकिन में थोड़ा सा अब स्वार्थी हो गया हूँ "सारथी नहीं" पिछले १० दिनों में तुमने शायद ठीक से अन्न पान नहीं क्या है..तुम लाचार से लग रहे हो तुम्हारे बड़े होंटो से मुस्कान गायब है..बस एक सवाल मुझे तुम्हारे विरोध में खड़ा कर रहा है..क्या तुमसे सत्ता नहीं संभल रही ? या फिर तुम्हारे पिटारे के नाश मिटे मंत्री इस लायक नहीं जो तुम्हारे सपनो को साकार कर सके..कहा गया वो व्यापम चोर लक्ष्मीकांत क्या तुम्हारा मंत्री बिक गया था? कहा गयी वो घमंड से भरी बड़ी मंत्री जिसने बच्चे को लात मारी थी? कहा गया वो भूपेंद्र सिंह जिसके बेतुक

कच्ची मिट्टी के घड़े

उस शाम हवा कुछ नम चल रही थी शायद कहीं बारिश बूँद बनकर धरती के गालों पर चूमने को गिरी होगी,उत्तर की और कोई दो सौ गज मुझसे एक बिजली चमकी शायद कहीं मींलो दूर आसमानी आफत आयी होगी या फिर कोई अब्राहम लिंकल सड़क के किनारे बैठा बिजली आने का इंतजार कर रहा होगा जो बारिश की वजह से अब तक गुल थी।हाँ ये ही होगा क्यों की बिजली ठीक उत्तर में गिरी थी और उत्तर में तो अमरीका हैं जनरल नाॅलेज की किताब में पढ़ा था।पर ये उत्तर उत्तर में ही क्यों हैं?दक्षिण या पूरब में क्यों नही? मीनू से पूँछूगा,मीनू से तो पेंसिल लेनी है जो उसने गणित वाले पिरियड में तोड दी थी। कुछ इसी तरह होता है बचपन जिसे ना कहीं खो जाने का डर ना ही दादी नानी की सफेद साड़ी वाली चुडैल के उठा ले जाने का खौफ या फिर गोलु के घर की टपरी की घास बारिश के बवंडर में उड जाने का डर या रिंकु का क्लास में सबसे आगे बैठ जाने का डर।खैर ऐसे डर से हम सब दो चार होते आये हैं..जिंदगी में हम सब ने ऐसी ही किसी बारिश में बीना लड़की के साथ भीग जाने वाले अहसास जीये हैं तरबतर् कपड़ो में पानी से भरे खड्डो में छयी-छपा-छयी खेलने का आंनद रिया की स्कूल ड्रेस पर बचा हुआ