जीवन ऊपर वाले का दिया हुआ सबसे अनमोल तौहफा है फिर ना जाने क्यों इस अनमोल तौह्फे की कद्र नहीं कर पाते दरअसल में बात जीवन की नहीं बल्कि इस जीवन में हमसे जुड़े लोगो की भी है क्यों कोई कैसे अपने आपको ख़त्म कर लेता है क्या उसको उससे जुड़े किसी इंसान की जरूरत ने नहीं रोका होगा..ये तब सोचता था जब मैंने जिंदगी को इतने करीब से नहीं जाना था..
असल में बहुत कुछ होता है जो हमे रोकता है इस तरह करने से पर इन सब बातो से भी ऊपर वो है जो अब तक हम जिंदगी जीने के लिए सहते आये..मान,सम्मान,पैसा,भविष्य सब कुछ जब लगता है सुरझित नहीं है तब इंसान अपने आप को जहर की गोलियों में,फांसी के फंदे में,धार की गोद में ढूंढता है..इस वजह से इस कहानी को नाम दिया है..आत्महत्या या हत्या..?
हत्या इसलिए भी क्यों की ये समाज द्वारा,परिवार द्वारा दी गयी मौत ही तो है जो जिंदगी हारने पर मजबूर करती है...
बात पिछले दिनों की है दो मासूम बच्चियां सारी रात बिलखती रही अपनी माँ की बंद आँखों को खोलने की कोशिश करती रही..ये समाज का दिया उपकार ही तो था, या फिर खुद का जिंदगी से हार जाना..वो चली गयी है अब ये समाज के सामने का पहलु है..
लेकिन दूसरी और मौत को गले लगाने से ठीक एक घंटे पहले की हक़ीक़त शायद ही कोई बयां कर पाएं..
फिर भी सोच कर देखिये आँखों के सामने अन्धेरा छा जायेगा..आँखों से आंसुओ की तेज़ धार निकल पड़ेगी..
उसने खूब निहारा होगा अपनी फूल सी बेटियो को,उसने माथे को चूमा होगा अपने जीवन साथी के..उसने एक पल में सब यादे मिटाने की कोशिश की होगी..मौत दर्दनाक थी उसकी क्यों की जिसे मौत को गले लगाने से उसकी प्यारी सी बेटियो की सूरत ना रोक पायी..सच में सोचिये कितनी परेशान होगी वो अपनी दुनिया से..अभी कुछ दिन पहले ही अपनी घर गृहस्थी को फिर से संवारा था कुछ नया सोच कर फिर आँशिया अपना बनाया था..परेशान हूँ सोच कर खुद समाज किस और जा रहा है यंहा जीवन से ज्यादा से विवशता है इसे जीने की..इस तरह से ख़त्म होती जिंदगियों को कोई मोल नहीं होता कुछ दिन में समाज भुला देता है लेकिन बस याद रह जाएगी तो उन फूल सी गुड़ियाओं के मन जो उस रात अपनी माँ की बंद आँखों को भी खोलने की कोशिश करती रही...ये सब कोई नसीब,तो कोई उम्र,तो कोई पागलपन,कह कर भुला देगा लेकिन मुझे हमेशा सोचने में आता है..जब दुर्घटना होती है तो मुवावजा मिल जाता है,हत्या में अपराधी को सजा,लेकिन इस तरह की मौत पर क्या मिलता है ?
क्यों की ये एक आत्हत्या होती है इसलिए या इसलिए की इसमें मरने वाले के सिवा कोई और दूसरा साक्ष्य नहीं होता...अब ऐसे मौत को क्या कहे?..आत्महत्या या ह्त्या..?
written by - Vijayraj Patidar
असल में बहुत कुछ होता है जो हमे रोकता है इस तरह करने से पर इन सब बातो से भी ऊपर वो है जो अब तक हम जिंदगी जीने के लिए सहते आये..मान,सम्मान,पैसा,भविष्य सब कुछ जब लगता है सुरझित नहीं है तब इंसान अपने आप को जहर की गोलियों में,फांसी के फंदे में,धार की गोद में ढूंढता है..इस वजह से इस कहानी को नाम दिया है..आत्महत्या या हत्या..?
हत्या इसलिए भी क्यों की ये समाज द्वारा,परिवार द्वारा दी गयी मौत ही तो है जो जिंदगी हारने पर मजबूर करती है...
बात पिछले दिनों की है दो मासूम बच्चियां सारी रात बिलखती रही अपनी माँ की बंद आँखों को खोलने की कोशिश करती रही..ये समाज का दिया उपकार ही तो था, या फिर खुद का जिंदगी से हार जाना..वो चली गयी है अब ये समाज के सामने का पहलु है..
लेकिन दूसरी और मौत को गले लगाने से ठीक एक घंटे पहले की हक़ीक़त शायद ही कोई बयां कर पाएं..
फिर भी सोच कर देखिये आँखों के सामने अन्धेरा छा जायेगा..आँखों से आंसुओ की तेज़ धार निकल पड़ेगी..
उसने खूब निहारा होगा अपनी फूल सी बेटियो को,उसने माथे को चूमा होगा अपने जीवन साथी के..उसने एक पल में सब यादे मिटाने की कोशिश की होगी..मौत दर्दनाक थी उसकी क्यों की जिसे मौत को गले लगाने से उसकी प्यारी सी बेटियो की सूरत ना रोक पायी..सच में सोचिये कितनी परेशान होगी वो अपनी दुनिया से..अभी कुछ दिन पहले ही अपनी घर गृहस्थी को फिर से संवारा था कुछ नया सोच कर फिर आँशिया अपना बनाया था..परेशान हूँ सोच कर खुद समाज किस और जा रहा है यंहा जीवन से ज्यादा से विवशता है इसे जीने की..इस तरह से ख़त्म होती जिंदगियों को कोई मोल नहीं होता कुछ दिन में समाज भुला देता है लेकिन बस याद रह जाएगी तो उन फूल सी गुड़ियाओं के मन जो उस रात अपनी माँ की बंद आँखों को भी खोलने की कोशिश करती रही...ये सब कोई नसीब,तो कोई उम्र,तो कोई पागलपन,कह कर भुला देगा लेकिन मुझे हमेशा सोचने में आता है..जब दुर्घटना होती है तो मुवावजा मिल जाता है,हत्या में अपराधी को सजा,लेकिन इस तरह की मौत पर क्या मिलता है ?
क्यों की ये एक आत्हत्या होती है इसलिए या इसलिए की इसमें मरने वाले के सिवा कोई और दूसरा साक्ष्य नहीं होता...अब ऐसे मौत को क्या कहे?..आत्महत्या या ह्त्या..?
written by - Vijayraj Patidar
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