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Showing posts from February, 2017

उन्मुक्त समाज का थप्पड़ ...

                                                                  उन्मुक्त समाज का थप्पड़ ... आज बात थोड़ी सी अलग करूँगा क्यों की पिछले कुछ सालो से हमारा समाज एक बीमारी से ग्रसित है और वो है उन्मुक्त समाज का थप्पड़ " जी हां ये एक ऐसा सत्य है जो कानून से कही ऊपर अपने आप को मानता है...पिछले दिनों एक घटना मेरे सामने आयी थी किसी ने चलती बस में पॉकेट मार दी और भी किसी एक लड़के को पकड़ कर समाज के चंद ठेकेदारो ने बीना सोचे समझे अपने बंधे हाथ खोल दिए..सबक सिखाना सही था पर क्या आज बस एक मात्र यही तरीका रह जाता है...असल में गुनाह हमारा है अपने आप को ऐसा बना रखा की इस तरह समाज में बीमारी दौड़ रही है...एक लड़की या लड़का अपने जीवन के यौवन में होते है तब अक्कसर प्रेम करने की गलती इस धूर्त समाज में कर  बैठते है..फिर बात आगे बढ़ती है और सामाजिक लोगो की तर्ष्णा फुट फुट कर बाहर आती है, सरे राह मुँह कला कर दिया जाता है,गधे पर सवार कर दिया जाता है,गालिया दी जाती है...और आज कल तो एक नया ट्रेंड चला पड़ा है इस तरह की घटना का विडियो बनाओ और सोशल नेटवर्किंग साईट पर अपलोड कर दो..नहीं भाई इंसान है गुनाह हो भी  

गुजरी हुयी यादे: काली रात (मर्डर मिस्ट्री)

गुजरी हुयी यादे: काली रात (मर्डर मिस्ट्री) : काली रात यह घटना पूर्ण रूप से काल्पनिक है किरदार और उनके नाम मात्र एक सयोंग है लेखक और पाठकों के बीच एक अजीब सी डोर होती है जिसे भाव कहते ...

"मेनफोर्स"

                                                                                                                                "मेनफोर्स" क्या आज हम एक हो जाएंगे...? ये सवाल मेरे उससे थे जिसने मुझे जीना सिखाया था..असल मे कोई किसी को कुछ नही सिखाता बस ठोकरे खाने से इंसान सिखता हे और बे-वजह दुनिया को कहता फिरता है,उसने मुझे ये सिखाया वो सिखाया। हाँ आज हम एक हो जाएंगे...ये लफ्ज उसके मुझसे थे। मैंने भी उत्सुकतावश पुछ लिया "प्रोटेक्शन युस करें या रहने दे"..जवाब मे बस इतना कुछ था"तु जल्दी आ जा मैं खाना बना लेती हूँ साथ मे खायेंगे। अजीब होता है ना प्रेम का अन-सुलझा सा रिश्ता..जिसके आखिरी छोर का पता भी नही और हम बस जी रहे होते है एक अलग सी दुनियाँ मे। भैया...भैया..सुनिये...एक स्ट्राबेरी फलेवर दे दीजिए 'और हाँ मेनफोर्स ही देना" ये शर्मींदा होने वाली बात थी ही नही असल मे ये युद्ध मे बचाव के साधन होते है जो अच्छे योद्धा की निशानी होते हैं,ये बात मुझे भी तब पता चली जब मे युद्ध की घोषणा होने के बाद ई मीडिया पर युद्ध कौशल कला को समझ रहा था। आ गया तु..

समाज बदलाव चाहता है....

समाज  बदलाव मे खो रहा हैं अजीब हे ना,अगर मे इस मुद्दे पर बात करूँगा तो शायद मुझे Made in china वाली घृणा से देखा जाये पर सत्य और सही कहने मे उतना ही फर्क है जितना सेक्स और फेक्स मे,दोनों शब्दो से काम का औचित्य बदल जाता है। आज बात करूँगा सेक्स के  फेक्स बनने की...... पिछले कुछ समय से अगर देखा जाये तो कमरे की चार दिवारी की सिसकियाँ अब मोबाइल के इनबाक्स मे आ सकती है। आधुनिकता के तौर मे आज सेक्स को फेक्स की तरह अपने प्रेमी/प्रेमिका के इनबाक्स मे भेजा जा सकता हैं,जिसे मैं तो कम से कम चुतियापा कहूँगा इसमे इतना ही मजा है जितना किसी को सपने मे याद करके बिस्तर खराब करना.....लेकिन फिर भी इसने बहुत ही रोचक प्रेम का विकास किया है.. ↣बकायदा इसमें आप बिना पैसा खर्च किये प्रेमी/प्रेमिका को शादी वाली पौशाक से लेकर इनर वियर तक महसूस कर सकते है. ↣ कभी कभी तो हद ही हो जाती है जब सेक्स के दर्द को लिख कर बंया किया जाता है. ↣और जब विश्वास अंतिम चरण पर होता है तब ये पर्सनल पिक्चर के आदान प्रदान तक पहुँच जाता है .. मानता हूँ समाज की मांग है बदलाव लेकिन युथ किस तरफ जा रही है ये वो इनके इनबाक्स मे

काली रात (मर्डर मिस्ट्री)

काली रात यह घटना पूर्ण रूप से काल्पनिक है किरदार और उनके नाम मात्र एक सयोंग है लेखक और पाठकों के बीच एक अजीब सी डोर होती है जिसे भाव कहते है,बस उसी भाव मन से "काली रात"पडियेगा।                                                               काली रात (मर्डर मिस्ट्री) राजू अरे राजू.....राजू जी साब........ राजू पानी पिला यार...... . लाया साहब.......(राजू बूढ़े साब के लिये पानी लेने किचन की और चला)....... ..आआआआआआआआआहहहहहहहहहह    (एक चीख रात के सन्नाटे को चीरती हुई ) घर के हर कमरे मे घूल जाती है... ..............रा...र ..राजू क्या हुआ तु चुप क्यों है  .. (आवाज लगाते हुए बुढे पाण्डे जी किचन मे चले गये)... ..आआआआआआआआहहहहहहहहह्अअअअअ (शायद अब ये आवाज बूढ़े पांडे जी की थी) सर से टपकता खुन और रूकी हुयी सांसे बंया कर रही थी की उनके शरीर मे जान बाकी नही रही है.... सुबह चार बजे..... इंस्पेक्टर- घर पर कल रात कौन कौन था..? रेखा- जी सर हमारा नौकर राजू और बाबूजी बस दोनो ही थे। इंस्पेक्टर- नौकर कहां हे तुम्हारा..? रेखा- वो अस्पताल मे है उसको भी चोट लगी हैं।...डॉ

मजबूरियाँ

                                                                                                   मजबूरियाँ कहानी के दो ही किरदार होते है बाकी तो सब बेमाने से लगते है..जिन्हे खुले आस्मां से तितलियाँ बटोरने का शौक़ हो वो कभी किसी की कैद में नहीं रहते..उन्हें खुद में खो जाने का घुमान होता है खुद में डूब जाने का अहसास होता है..जिन्हे ना लोगो की परवाह होती है ना ज़माने के सही गलत चोचलो में उलझने का डर..ऐसा कुछ सलोनी सोचती थी शादी के पहले उसने शादी को लेकर बहुत सपने देखे थे वैसे तो अक्क्सर सपने नींदो में बंद आँखों से देखे जाते है..पर सलोनी जागते हुए खुली आँखों से सपने देखती थी.. तुम मुझे कभी टाइम नहीं दे पाते हो,मेरे उठने के पहले चले जाते और सोने के बाद आते हो..दो साल हो गए सीड अब तक हमने बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा..वो नेहा की शादी मेरे साथ ही हुयी थी दो साल में दो बेबी है उसके और तुम देख लो तुमने आज तक ढंग से कभी रात भी अंधेरो से नहीं छंटने दी..जितना गुस्सा था सब सलोनी अपने पति पर उतर चुकी थी..सुबह की चाय अगर सीड को पिछले दो साल से ऐसी ही मिल रही थी तो जरूर कोई बात थी..जो दोनों की