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Showing posts from July, 2017

कल की बात और मिताली राज

कल की बात और मिताली राज ................. ................... रविवार का दिन,ऑफिसियल छुट्टी,फुर्सत या ये कह लीजिये एक बैचलर के लिए तमाम वो काम करने का दिन जो वो सप्ताह के ६ दिन नहीं कर सकता,सुबह वैसे नहीं हुयी जैसे रोज होती थी..आज थोड़ी देर तक सोया,लगभग साढ़े नौ बजे तक जब आँख खुली तो दीपक और सचिन अपनी कॉम्पिटिशन एक्साम की तैयारियो में वयस्त थे,मैंने ब्रश करने के बाद सीधे डेयरी पर जाकर दूध और पास वाले रेस्टॉरेंट से पांच पुड़िया पोहे पैक करवाये..रूम पर आकर हम सब ने संडे को स्पेशल बनाने के लिए कोई बेवजह का मुद्दा नहीं छेड़ा और ना किसी बात पर चर्चा की,आंटी ने खाना बनाया,.....हां क्या बनाये? इस पर थोड़ी चर्चा करने के बाद दाल बाटी बनाने का DECISION हुआ अब बारी थी निचे जा कर मकान मालकिन से ओवन लाने की अगर गांव में होता तो माँ गाय के गोबर से बने कंडो की धुनि बनाकर बाटी भार देती लेकिन शहरो ने गांवों के रिवाजो,परम्पराओ को लील लिया जैसे एक कुंवारी कन्या को एक चुटकी सिन्दूर सुहागन होने की सैज पर लील जाता है लेकिन दूसरी और आज का दिन ख़ास और बहुत ख़ास भी होने वाला था मिताली राज और उनकी टीम की पंद्रह-स

अवि वाली अंकिता..

जब भी कभी पहली दफा हाथ में पेम-पेन्सिल-कलम पकड़ी होगी उस दिन शायद में बहुत रोया होगा,इसलिए नहीं की में लिखने से दर रहा था बल्कि इसलिए कंही में गलत ना लिख दूँ,जब में स्लेट पर "अ" बनाने की कोशिश करता था तो वो हमेशा मेरी टीचर को "8" की तरह ही दिखता था,फिर मैंने धीरे धीरे उस "8" को सही करके "अ" बनाने लगा,सब खुश हुए मेरी टीचर,मेरे पापा,मेरी माँ और शायद अंकिता भी,अंकिता का जिक्र करना यंहा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वो जब भी मुझे कुछ सीखते या करते देखती वो बहुत खुश होती,स्कूल में आने वाले हर बच्चो की तरह ही वो भी थी क्लास में हम दोनों के बेंच के दोनों कोनो के आस पास ही बैठते थे बीच में जो थोड़ी जगह होती थी वो हमारे बस्ते रखने से भर जाती थी वो टिफ़िन नहीं लाती थी वजह कभी उसने मुझे नहीं बताई और मैंने पूछा भी नहीं,मैं अपने टिफिन में उसके लिए भी खाना लेकर आता था या फिर मेरी मम्मा को पता था मेरे साथ अंकिता भी खाना शेयर करती है शायद मैंने ही उन्हें कभी अंकिता के टिफिन ना लाने वाली बात बताई हो,एक दिन लंच ब्रेक में स्कूल के ग्राउंड में लगे गुल्लर के पेड़ के नीचे हम

जिंदगी की पहली दारू पी नहीं,पीला दी जाती है..

जिंदगी की पहली दारू पी नहीं,पीला दी जाती है यूँही फ्री में जिसका उधार कितनी ही बार साथ बैठ कर पी लो लेकिन चुकाने का मन नहीं होता या फिर चुकाने की याद नहीं आती,वैसे तो दारु पर लिखना उतना ही बेकार है जितना बस में सफर कर रहे हो और पास में बैठा कोई यात्री आपकी गोद वाश बेसिन समझ कर खा या पीया उड़ेल दे,पर मुझे लिखने के लिए किसी प्रकार की कोई भी इंस्पिरेशन की जरूरत नहीं होती अच्छा लगे या बुरा में बस लिख देता हूँ और शायद हम सब बस इन वजहों से पीछे रह जाते है क्योंकी हम दुसरो की प्रतिक्रिया के इंतज़ार में अपने मन के किस्से,बाते कभी बहार ला ही ना पाते..जिंदगी के पहले हर वो काम जो किये नहीं करवाए जाते है..कभी सुना है किसी बच्चे ने सत्नपान किया नहीं ना माँ ने करवाया पहली बार,आपको याद है जिन्दी की पहली सु-सु खुद ने की थी,किसी ने सु-सु बोलकर करवाई थी,साला मुझे तो दुनिया में लाने के लिए भी नर्स ने सांस दी थी,पोट्टी भी जंहा तक याद है शायद माँ ने आकस्मिक आवाजों के सहारे ही करवाई थी,ऐसा ही कुछ मेरे जहन में किस्सा आता है जब में अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए उज्जैन आया था,सही सोच रहे है आप वही उज्जैन जिसे महा

"नमक स्वादानुसार"..बस टाइटल चोरी का है.

आप सोच रहे होंगे ये जनाब अपनी कहानी का टाइटल निखिल सचान की "नमक स्वादानुसार" से चुरा कर लाये है,तो बिलकुल सही सोच रहे है,क्या है ना मैं परवाह नहीं करता क्या कहाँ से आया,और मैं कहाँ से लाया और वैसे भी किसी महान पुरुष ने कहा है अगर कोई चीज कुछ सिखाती है तो उसे अपने जीवन में उतार लो..पर मैंने तो चुरा लिया क्यों मुझे नमक स्वादानुसार ही लगता है और शायद आपको भी,दरअसल मैं कोई महान लेखक तो हूँ नहीं लेकिन जब भी दिमाग के कीड़े मुझे बैचैन करते है मैं अपने आप को लिखने के लिए कहता हूँ.. सुबह का समय था.. रोज की तरह ७.४० पर उठा लेकिन मेरे आलस की अंगड़ाई मेरे वयस्त समय पर चद्दर डाल कर सोने को मजबूर कर रही थी..१० मिनिट और सो लिया जाय आप मैं हम सब ऐसे ही मन को चुतिया बना कर सोने की कोशिश करते है लेकिन ये १० मिनिट कब ३० मिनिट में बदल जाते है पता ही नहीं चलता..निचे रूम से उठ कर यही सोचता आ आ रहा था "अनु आज मुझे उठाने क्यों नहीं आया?शायद आया भी हो लेकिन मैं उठा नहीं हो?अगर में उठा नहीं तो वो देखते ही चिल्लायेगा? ये सवाल खुद से पूछ कर खुद से जवाब मांग रहा था..लेकिन ऊपर रूम में जा कर देखा तो