लोग मेरे साथ रह नही सकते उनको लगता हैं निहायती बदद्तमीज,बद्दिमाग इंसान हूँ और सिर्फ इसलिए नही कह रहा हूँ क्योंकि ये मैं सोचता हूँ बल्कि इसके पीछे एक खास वजह हैं "मैंने जिंदगी में कभी कोई काम सही तरीके से सही करने की कोशिश नही की" लोगों ने मेरे साथ रिश्ते बनाये उन्हें बेडरूम की बेडशीट की तरह इस्तेमाल किया यहाँ बेडरूम की बेडशीट शब्द का उपयोग इसलिए सही हैं क्योंकि कुछ रिश्ते चेहरों से शुरू होकर बिस्तर पर बाहों में बाहें डाले हुये दम तोड़ देते हैं साथ छोड़ देते हैं "बैडरूम की बेडशीट और लोगो से मतलब सिर्फ गंदगी भरी उलझनों से है लिखते समय हरगिज़ नहीं सोचता क्या लिख रहा हूँ पर सच कहूं तो ये वो सड़ांद है जो समाज के दिमाग में आज भी भरी है" और मेरे जैसे नामाकुल "कुल" की लाज भी नही बचा पाते हैं मुझे समझना नामुमकिन था इसलिए लोगों ने कुछ उपनाम दे दिये इसलिए की मैं बुरा इंसान हूँ लेकिन आप जानते हैं जब आदमी चोंट खाता हैं तो फिर वो दुनिया को ठेंगा दिखाने लग जाता हैं क्यों वो जान चुका होता हैं उसे राॅकस्टार के रनबीर कपूर की तरह अंत मे नरगिस मिल जायेगी वो नरगिस जो समाज की औपचारिकताओ में किसी को निहायत ही गंदी गाली बना कर चली गयी वहीं गाली जिसे लोग देना भी चाहते और ना भी कुछ ऐसा ही लिखने के इरादे से आज फिर "कलम स्याही में डूबो रहा हूँ" यकीन हैं आप सबको बहुत अच्छा लगे और विश्वास हैं कभी मेरे जैसे इंसान मिले तो कुछ समय रूक कर जानने की कोशिश कीजिए आखिर क्यों हम जैसे "बद्दिमाग" होते हैं।
अच्छी लड़की हर लड़की अच्छी होती हैं या ये कहूँ अच्छी होने का स्कार्प मुँह पर डालें अच्छी बनने की कोशिश में लगी रहती है..कभी गुजरिये किसी गर्ल्स हॉस्टल के बाजु से देखने को मिल जाएगा माँ बाप की दी हुयी भरोसे की आज़ादी का कैसे मखौल उड़ता है वैसे ही ठीक जैसे सिगरेट के कश के बाद धुंए का गुबार.,अब आप भी सोच रहें होंगे यकीनन ये आदमी बद्दिमाग हैं पर शायद यहाँ रहने वाली अच्छी लड़कियाँ कहीं लड़को को गाली बनाने में लगी रहती हैं एक मुलाकात के भाव-मोल तय करती हैं हर दूसरे दिन आंखों में आंसु भर कर कोई नयी डिमांड मखमल कें कम्बंल में लपेट कर दे मारती हैं और दर्द भाव ऐसा कोई भी कुछ भी करने को तैयार हो जाये..ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि वो अच्छी होती हैं..
बात उन दिनों की जब अनिकेत अपने मैनेजमेंट कोर्स के लियें कानपुर सें दिल्ली आया था कानपुर वाले अक्सर कनपुरियों या कहूँ कन खजूरों की तरह ही होते हैं जिनके दिमाग और पिछवाड़े में हमेशा देख लेंगे वाली टेग लाइन उलझी रहती हैं अकड और घंमड से मिडिल क्लास फैमेली से बिलांग रखता था ये मिडिल क्लास वाले होते बड़े घमंडी है देखिये ना फ्रिज लाये एक वो भी सेकंड हैंड और पब्लिसिटी ऐसे करते है जैसे डबल डोर ले आये हो..पर दम कनपुरियों वालों की तरह रहीसी का था मिलने को तो पाॅकेट मनी के लिये 2000 रूपया महीना मिलता था और खर्च कुछ था भी नही, माँ सब घर से भेज दिया करती थी लेकिन ये तब ठीक था जब तक अनिकेत सिंगल फाॅर सेल था जल्दी ही वो अच्छी लड़की की तलाश मैं निकल गया कहते हैं ना आबो हवा रूख और रूह दोनो बदल देती हैं...
..hii..
हमारा नाम अनिकेत है ।
तो मैं क्या करूँ?
नहीं करना कुछ नही है हमने वहाँ चाट वाले भैया से आपको एक पानी-पुरी के लिये मगज-मारी करते देखा।
हम्म देखा तो...?
नहीं वो सोचा..नही मन कीया उस चाट वाले का ठेला तोड़ दे।
अच्छा ये अहसान किस खुशी में?
@@@$$$नही हम अनिकेत हैं
....तो क्या करूँ ?
दोस्ती कर लो हम सें हमें ऐसे चाट वाले से लड़ने वाली लड़की पंसद है "सही भी था कानपुर में तो औरतों की दंबगई भी तनुजा द्विवेदी की तरह होती हैं"
..देखो मुझे तुमसे कोई दोस्ती नही करनी। "चल रजत यहाँ से"
अनिकेत भी अपना कनपुरिया भेजा लेकर वहाँ से चला जाता हैं...
..कुछ दिनो तक अनिकेत भूल नही पाया क्योंकि शायद वो झंड बनने की कोशिश कर रहा था वही तनु वाला झंड जो उसने मनु को बनाया था...एक दिन कनपुरिया अपने मामाजी को छोड़ने स्टेशन गया था वहीं किसी काम से वही चाट वाली लड़की आज फिर किसी का दिमाग चाटते हुये नजर आ गयी अनिकेत तो ठहरा कानपुर से और इन कनपुरियों की आदत होती हैं दूसरे के फटे में टाँग टालने की ठीक वैसे ही जैसे फिल्मी हिरों की होती हैं ...
क्या भैया जी काहें मेडम जी तु-तडाक कर रहे हो दिखता नही लेडीज हैं अभी दो मिनट मैं थाने के चक्कर लगवा देंगी..."कुली के तो नही हाँ पर शायद अनिकेत के ज़रूर लगने वाले थे" ज्यादा इमोशन में कभी कभी लूजमोशन भी हो जाते हैं।
जब आपको प्यार होता है या होने के थोड़े पास भी होता है तो फिर समझ जाइये दिन रात वो चेहरे गेंदे के फूल के पास भोंरे के मंडराने जैसा ही लगता है..कनपुरिया की पहली मुलाक़ात कुछ ख़ास नहीं थी दूसरी मुलाक़ात में जेल जा चुके थे और बाकी रहा दिमाग का तो वो इन कानपूर वालो में होता ही कहा है जनाब..अनिकेत इतना कुछ सोचने का आदि नहीं था उसे बस दो तरीके ही आते थे "छेड़ दिया तो छोड़ना नहीं और छोड़ दिया तो छेड़ना नहीं" ठीक वैसे ही जैसे स्पंदन चुकिया "चुतिया वाला चुकिया नहीं"..ना जाने कब दो हफ्ते बीत गए इतने बड़े शहर में एक अदनी सी लड़की पता लगाने में लेकिन दिल्ली की गलियों में एक अच्छी लड़की ढूंढ़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा काम भी है..
चांदनी चौक- कहते है यंहा सब मिलता है..सुई से लेकर हवाईजहाज तक शायद यही सोच कर अनिकेत गली वाले हनुमान जी को एक रुपये की चिरोंजी और ४ रुपये का नारियल चढ़ा कर मन्नत मांग आया था "आपने तो सीता ढूंढ दी आपके लिए चाट वाली ढूंढ़ना मुश्किल नहीं होगी भगवान् जी" जब इस चूतिये जैसे लोग मिन्नतें करते है तो भगवान भी खूब समझते है ना जाने क्या सूजी की अगले ही पल बस स्टॉप पर कनपुरिया की मुलाक़ात चाट वाली से हो गयी "bye god की कसम हमे भी बिट्टु दिलवा देते जब इतनी आशिक़ो की परवाह है तो....
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