स्कूल का पहला दिन अमूमन बहुत ही कम उम्र में देखने को मिलता है..जब हमे शायद ठीक से तारीख,वार,समय तक याद नहीं होता,याद होता है तो बस धूल भरी सड़को पर भागते रहना,दिन भर बिना थके खेलते रहना,मम्मी से आइसक्रीम की जिद्द करना,पापा के कंधो पर बाजार जाना,दादा-दादी से कहानियाँ सुनना..लेकिन स्कूल का पहला दिन जहन में एक ना मिटने वाली तस्वीर का तरह हमेशा रह जाता है..वो दिन जिस समय हम अपने माँ-पापा की उँगली छूटने से डरते है..अपनी शैतानियों को खुल करने की बजाय १५*३० की क्लास में करने की सोचते है,टीचर के हाथो की पिटाई को याद रखने की कोशिश करते है..ऐसा ही कुछ मेरा भी पहला दिन था स्कूल में जुलाई की पहली तारीख साल १९९५ का था साल इसलिए भी याद रहा क्योकि इसी साल में मुझे छोटा भाई मिला था..तैयारी किसी जंग पर जाने जैसी चल रही थी..मम्मी की मनपसंद चीजों को मेरे लिए लाया जा रहा था..टिफिन,बॉटल,बेग, लेकिन एक चीज से बहुत नाराज थे,मेरे स्कूल की यूनिफार्म बहुत ही खराब लगी थी उन्हें..लेकिन फिर भी उन्होंने उसे नज़रअंदाज़ किया क्योंकि गांव में एक मात्र स्कूल ही था..सुबह हो गयी थी बेग तैयार था और मम्मी भी,मुझे पहली बार उन्होंने जल्दी उठाया था यही कोई सुबह ७ बजे में रो कर जबरन तैयार कर दिया गया यूनिफार्म में मुझे नज़र ना लगे इसलिए मेरे गालो के निचे एक कला टीका लगा दिया..पापा की उँगली पकड़ कर बाजार जाना रोज की बात थी लेकिन जब पापा ने क्लास में बिठाया तब हम सब बच्चे रो रहे थे कुछ मुझसे पहले आये और कुछ मेरे बाद पर हाल सबका एक सा था..टीचर ने खूब कोशिश लेकिन ना चॉक्लेट ना बिस्किट बात तब बनी जब उन्होंने कहानियाँ सुनाना शुरू किया,पहला दिन बहुत यादगार रहा हम सब दोस्त आज अलग अलग जगह है किसी के खुद के बच्चे हो गए और अपने बच्चो को शायद इस जुलाई की पहली तारीख को स्कूल का पहला दिन दिखाये..शायद अब बड़ा हो गया हूँ और स्कूल के बाद के दो तीन साल कुछ यूँ बयां कर सकता हूँ..उस शाम हवा कुछ नम चल रही थी शायद कहीं बारिश बूँद बनकर धरती के गालों पर चूमने को गिरी होगी,उत्तर की और कोई दो सौ गज मुझसे एक बिजली चमकी शायद कहीं मींलो दूर आसमानी आफत आयी होगी या फिर कोई अब्राहम लिंकल सड़क के किनारे बैठा बिजली आने का इंतजार कर रहा होगा जो बारिश की वजह से अब तक गुल थी।हाँ ये ही होगा क्यों की बिजली ठीक उत्तर में गिरी थी और उत्तर में तो अमरीका हैं जनरल नाॅलेज की किताब में पढ़ा था।पर ये उत्तर उत्तर में ही क्यों हैं?दक्षिण या पूरब में क्यों नही?
मीनू से पूँछूगा,मीनू से तो पेंसिल लेनी है जो उसने गणित वाले पिरियड में तोड दी थी।
कुछ इसी तरह होती है स्कूल लाइफ धन्यवाद पापा आपने मुझे स्कूल का पहला दिन जीने का मौका दिया..जिंदगी में शायद इस पल को मैं फिर से जी पाऊँ..धन्यवाद् भास्कर और पूरी टीम जिन्होंने मेरे अहसास को अपने महत्व पूर्ण पेज पर जगह दी.
लेखन- विजयराज पाटीदार (Marketing Team leader at rubber industries)
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