माना की तुम यार नहीं........शिवराज अकेला ही काफी है..शिवराज किसानो का है..शिवराज आम जनता का है..पिछले १० बरस में कभी तन्हा नहीं देखा तुम्हे आज इस तरह देख कर बेबस हूँ..तुम बहुत हिम्मती हो मेरे दोस्त तुम बहुत जज्जबाती हो..तुमने पिछले बीते सालो में अपनी पूरी कोशिश की है प्रदेश को उन्नति पर ले जाने की,तुमने हर असंभव काम को पूरा किया है..हम सब मानते है तुमने कोई कोर कसार नहीं छोड़ी प्रदेश को आगे ले जाने की..तुम्ही हो जिसने प्रदेश में बड़े बड़े उद्योगपतियों को आने पर विवश किया..लेकिन में थोड़ा सा अब स्वार्थी हो गया हूँ "सारथी नहीं" पिछले १० दिनों में तुमने शायद ठीक से अन्न पान नहीं क्या है..तुम लाचार से लग रहे हो तुम्हारे बड़े होंटो से मुस्कान गायब है..बस एक सवाल मुझे तुम्हारे विरोध में खड़ा कर रहा है..क्या तुमसे सत्ता नहीं संभल रही ? या फिर तुम्हारे पिटारे के नाश मिटे मंत्री इस लायक नहीं जो तुम्हारे सपनो को साकार कर सके..कहा गया वो व्यापम चोर लक्ष्मीकांत क्या तुम्हारा मंत्री बिक गया था? कहा गयी वो घमंड से भरी बड़ी मंत्री जिसने बच्चे को लात मारी थी? कहा गया वो भूपेंद्र सिंह जिसके बेतुके बयानों से जनाक्रोश बड़ा? क्या ये सब भी तुम्हारे साथ अनशन पर बैठेंगे ? तो देखना मेरे हिम्मती शिवराज ये अनशन में तुम्हारे साथ गद्दारी ना कर बैठे भूखे रहने की बजाय ये पेट भर खाना ना खा बैठे..चिंतित तो मैं हूँ ही नहीं, क्योकि जिस तरह तुम जिम्मेदारी से पल्ला छाड़ बैठे हो..तुम जिस तरह से घर में बैठे सत्ता का रस पान कर बैठे हो..दौड़ दौड़ कर महाकाल की शरण में आने वाले शिव के कण शायद तुम्हारे पैर जनता के बीच में जाने से कटरा रहे है..अगर गिनने बैठ जाऊँ तुम्हारी नाकामयाबी के किस्से तो तुम कहो के "कहाँ थे प्रभु इतने दिन से" तुमने मंत्री मंडल में गद्दारो की फौज बैठा दी है जिसने जनता के खून से होली खेली है..उम्मीद करता हूँ तुम्हारा अनशन सफल रहे है..लेकिन तुम हर वर्ग को नाराज कर बैठे हो..जल्दबाजी में ऐसा फैसला मत ले बैठना की कल को व्यापारी,शिक्षक,आम जनता भी इस बिना नेतृत्व की भीड़ की तरह उग्र हो जाये..वरना मेरे सफल शिवराज तुम्हारी असफलता का श्रेय ये दोगले मंत्री लेने को राजी ना होंगे..उम्मीद है तुम अपना काम करोगे..प्रदेश में शांति फिर से कायम करोगे...
अनशन पर मत बैठो जनाब।
तुम्हें लाशों के ढेर पसंद हैं।।
#शिव अकेला ही काफी हैं #अनशन ही बस अब उपाय बाकी हैं।
अल्फाज सिरहाने रख कर सोया कर ऐ-तन्हा-जिंदगी।
यहाँ पग-पग पर लोग गालिब बनने की कोशिश किया करते हैं।
#अंजुमन
तुम ना समझोगे हमारी बात..
हम ज़ाहिल जो ठहरे बस्ती के..
#किसान को शिवराज
हँसी आती मुझे उस जाने मने अखबार के पन्ने को को देख कर...ये किसान नहीं थे,इनके नाम कोई जमीन है..मान लिया नहीं उनके नाम ज़मीन..१९-४० वर्ष की उम्र के ये नौ-जवान किसी भूमि के मालिक नहीं थे क्योंकि अमूमन कोई भी किसान अपनी संपत्ति अपने बुढ़ापे में अपने परिजनों के नाम करता है..ये एक विरासत है जिसे ठीक हिन्दू रीती-रिवाज के साथ सौंपा जाता है मुगलो की तरह नहीं गद्दी पाने के लिए अपनों का खून बहा दो..ये वो थे जिनके बाप दादा के नाम ज़मीन थी..अब अगर ऐसे में तुम सोच रहे हो तो..शायद तुम अपने उस १९ साल के बेटे के नाम अपनी संपत्ति लिखने वाले हो..चलो मान लिया नहीं लिखने वाले हो..तो क्या वो अपने पुरखों के हक़ के लिए आगे नहीं आता..जरूर आता..तो समझ गए ना..जो हुआ वो घौर लापरवाही का नतीजा है "ठीक वैसे ही जैसे एग्जाम हाल में आने के बाद पता चले एडमिट कार्ड साथ नहीं लाये"
हवाओं का रुख मेरी और है..नही शायद मेरे कमरे की और होगा,कुछ 5-6 साये मेरी तरफ चले आ रहे हैं।शायद "अभिषेक" और उसके साथी हैं।शरीर से रिसता हुआ खून फेफड़ों में फँसी गोलियाँ जवाब मांग रही हैं?
और जवाब मिला बेतुके जवाबों के बीच "गोलियाँ पुलिस ने चलायी थी" 'चार-छ: तबादले" बस तबादले कहीं से तो कोई तो जनरल डायर होगा जिसने फायर कहा होगा? सरकार किसकी जिसने आदेश दिया और ना भी दिया तो प्रशासन किसका जिसने निर्णय लिया ? शर्म कीजिए लुका-छुपी के खेल से एक बार जिम्मेदारी का गमछा गले में डाले, उन किसानो नहीं सब्सिडी खाने वाले किसानों के यहाँ हो आइए। कुछ नहीं होगा और भी गया तो शहीद ही कहे जाओगे।कोठी में बैठ कर तमाशा देखने से कुछ नही होगा "घर में घुस कर लादेन नही तुम मजबूरों को मरवा आयें हो" एक दफा नही तुम सौ दफा पाप कर आये हों।अब अपनों के तबादले करवा कर तुम मरहम लगाना तो दुर, तुम अपने किये पर मिट्टी डलवा रहे हो।
अब कुछ कहेंगे ये सब चाल हैं अराजक तत्वो की,तो क्या तुम इतने कमजोर हो।जिसने पैदल ही नाप दी नर्मदा मीलों की।
यशस्वी बनो,तपस्वी नही-जिम्मेदार बनो,नकारा नही।
कितनी कमजोरी है इंसा तेरे गिरेबां में..
कुछ लोग मारे गए है फटाको में..
तेरा ध्यान बस है किसानो के आंदोलन में...
मुआवजा करोडो का उन गरीबो तक भी पंहुचा देना..
वो भी थे तेरे चाहने वालो में..
कल की गोली भूल गये।
आज का दिन मालूम हैं ।।
कल का मातम भूल गये।
आज की तोड़-फोड़ याद हैं।।
कैसे तुम याद करोगे इतिहास।
दी हुयी हर निशानी भूल गये।।
एक बदले दस सिर लाने वालों।
तुम कल का वादा भूल गये।
आज की आगजनी मालूम हैं।।
जिस सेना को सीमा पे मरवाये हो।
उससे आज पाप करवाये हो।।
अरे मातम् पसरा होगा तुम्हारी गली में।
यहाँ तो लहू बहा कर शेर आये हैं।।
शर्म करो तुम पहले गोली चलवाये हो।
फिर मौत गरीबों की पर रूपये बँटवाये हो।।
#जवाब अपने अंदाज में दें। #बेबाक सुनना पंसद हैं।
किसानों पर गोलियाँ किसने चलायी ?
अब कोई तालिबानी तो आया नही था वहाँ और सरकार अनजान बनने की कोशिश ना ही करें तो बेहतर हैं IAS..IPS दर्जे के अधिकारी भी राजनेताओं की तरह बयान देना सीख लिए "तंत्र फेल रहा" अरे जनाब काहे का तंत्र "बंदूके तो तुम्ही लाये थे" किसान तो पत्थर फेंक रहे थे तुम भी लाठीयां भांज देते "माफ करना नेतृत्व किसानो के नही तुम्हारे पास नही था तभी तो तुम्हें खबर नही गोली कहां से चली,कब और क्यों चली" चलो मान लिया लोगों को गुमराह क्या जा रहा है तो तुमने ऐसे मौके दिये ही क्यों और वैसे भी तुम पर एक आरोप नही हैं कहीं फाइले दबायें बैठे हो "जरा उठना तो वो डंपर कांड और व्यापम की फाइल देखना हैं...ना सिंहस्थ के कारनामे बाद में अब जब बात जान पर बन ही आयी हैं तो एक एक करके हिसाब लेंगे"
और हाँ ये एक एक करोड़ पुछ कर तो बाँटे ना ?
उम्मीद करता हूँ मेरा शिवराज अकेला ही काफी है..जनता का मामा उनके दुख दर्द में उनके साथ है..उम्मीद तुम सफल रहो..मामा जी
लेखन- विजयराज पाटीदार
अनशन पर मत बैठो जनाब।
तुम्हें लाशों के ढेर पसंद हैं।।
#शिव अकेला ही काफी हैं #अनशन ही बस अब उपाय बाकी हैं।
अल्फाज सिरहाने रख कर सोया कर ऐ-तन्हा-जिंदगी।
यहाँ पग-पग पर लोग गालिब बनने की कोशिश किया करते हैं।
#अंजुमन
तुम ना समझोगे हमारी बात..
हम ज़ाहिल जो ठहरे बस्ती के..
#किसान को शिवराज
हँसी आती मुझे उस जाने मने अखबार के पन्ने को को देख कर...ये किसान नहीं थे,इनके नाम कोई जमीन है..मान लिया नहीं उनके नाम ज़मीन..१९-४० वर्ष की उम्र के ये नौ-जवान किसी भूमि के मालिक नहीं थे क्योंकि अमूमन कोई भी किसान अपनी संपत्ति अपने बुढ़ापे में अपने परिजनों के नाम करता है..ये एक विरासत है जिसे ठीक हिन्दू रीती-रिवाज के साथ सौंपा जाता है मुगलो की तरह नहीं गद्दी पाने के लिए अपनों का खून बहा दो..ये वो थे जिनके बाप दादा के नाम ज़मीन थी..अब अगर ऐसे में तुम सोच रहे हो तो..शायद तुम अपने उस १९ साल के बेटे के नाम अपनी संपत्ति लिखने वाले हो..चलो मान लिया नहीं लिखने वाले हो..तो क्या वो अपने पुरखों के हक़ के लिए आगे नहीं आता..जरूर आता..तो समझ गए ना..जो हुआ वो घौर लापरवाही का नतीजा है "ठीक वैसे ही जैसे एग्जाम हाल में आने के बाद पता चले एडमिट कार्ड साथ नहीं लाये"
हवाओं का रुख मेरी और है..नही शायद मेरे कमरे की और होगा,कुछ 5-6 साये मेरी तरफ चले आ रहे हैं।शायद "अभिषेक" और उसके साथी हैं।शरीर से रिसता हुआ खून फेफड़ों में फँसी गोलियाँ जवाब मांग रही हैं?
और जवाब मिला बेतुके जवाबों के बीच "गोलियाँ पुलिस ने चलायी थी" 'चार-छ: तबादले" बस तबादले कहीं से तो कोई तो जनरल डायर होगा जिसने फायर कहा होगा? सरकार किसकी जिसने आदेश दिया और ना भी दिया तो प्रशासन किसका जिसने निर्णय लिया ? शर्म कीजिए लुका-छुपी के खेल से एक बार जिम्मेदारी का गमछा गले में डाले, उन किसानो नहीं सब्सिडी खाने वाले किसानों के यहाँ हो आइए। कुछ नहीं होगा और भी गया तो शहीद ही कहे जाओगे।कोठी में बैठ कर तमाशा देखने से कुछ नही होगा "घर में घुस कर लादेन नही तुम मजबूरों को मरवा आयें हो" एक दफा नही तुम सौ दफा पाप कर आये हों।अब अपनों के तबादले करवा कर तुम मरहम लगाना तो दुर, तुम अपने किये पर मिट्टी डलवा रहे हो।
अब कुछ कहेंगे ये सब चाल हैं अराजक तत्वो की,तो क्या तुम इतने कमजोर हो।जिसने पैदल ही नाप दी नर्मदा मीलों की।
यशस्वी बनो,तपस्वी नही-जिम्मेदार बनो,नकारा नही।
कितनी कमजोरी है इंसा तेरे गिरेबां में..
कुछ लोग मारे गए है फटाको में..
तेरा ध्यान बस है किसानो के आंदोलन में...
मुआवजा करोडो का उन गरीबो तक भी पंहुचा देना..
वो भी थे तेरे चाहने वालो में..
कल की गोली भूल गये।
आज का दिन मालूम हैं ।।
कल का मातम भूल गये।
आज की तोड़-फोड़ याद हैं।।
कैसे तुम याद करोगे इतिहास।
दी हुयी हर निशानी भूल गये।।
एक बदले दस सिर लाने वालों।
तुम कल का वादा भूल गये।
आज की आगजनी मालूम हैं।।
जिस सेना को सीमा पे मरवाये हो।
उससे आज पाप करवाये हो।।
अरे मातम् पसरा होगा तुम्हारी गली में।
यहाँ तो लहू बहा कर शेर आये हैं।।
शर्म करो तुम पहले गोली चलवाये हो।
फिर मौत गरीबों की पर रूपये बँटवाये हो।।
#जवाब अपने अंदाज में दें। #बेबाक सुनना पंसद हैं।
किसानों पर गोलियाँ किसने चलायी ?
अब कोई तालिबानी तो आया नही था वहाँ और सरकार अनजान बनने की कोशिश ना ही करें तो बेहतर हैं IAS..IPS दर्जे के अधिकारी भी राजनेताओं की तरह बयान देना सीख लिए "तंत्र फेल रहा" अरे जनाब काहे का तंत्र "बंदूके तो तुम्ही लाये थे" किसान तो पत्थर फेंक रहे थे तुम भी लाठीयां भांज देते "माफ करना नेतृत्व किसानो के नही तुम्हारे पास नही था तभी तो तुम्हें खबर नही गोली कहां से चली,कब और क्यों चली" चलो मान लिया लोगों को गुमराह क्या जा रहा है तो तुमने ऐसे मौके दिये ही क्यों और वैसे भी तुम पर एक आरोप नही हैं कहीं फाइले दबायें बैठे हो "जरा उठना तो वो डंपर कांड और व्यापम की फाइल देखना हैं...ना सिंहस्थ के कारनामे बाद में अब जब बात जान पर बन ही आयी हैं तो एक एक करके हिसाब लेंगे"
और हाँ ये एक एक करोड़ पुछ कर तो बाँटे ना ?
उम्मीद करता हूँ मेरा शिवराज अकेला ही काफी है..जनता का मामा उनके दुख दर्द में उनके साथ है..उम्मीद तुम सफल रहो..मामा जी
लेखन- विजयराज पाटीदार
Comments
Post a Comment