बात लगभग दो साल पहले ठंड के दिनों की है mba पूरा होने के बाद मैं ज्यादा से ज्यादा समय इंटरव्यू की तैय्यारी के लिए ही दे रहा था,लेकिन लगातार मुझे मिल रही असफलताओ से मैं थोडा चिंतित रहने लगा था,ऐसे में मेरे एक दोस्त ने मेरी परेशानी समझ कर मुझे कंही घूम आने की सलाह दी इससे मेरे दिमाग में चल रही एक जैसी चीजों से छुटकारा भी था और ठंड के दिनों में कंही घूम आने का अवसर भी,मैंने तुरंत हामी भर दी हम दोनों अगली ही सुबह घर से (आगर के पास) निकल गए,टूर ओम्कारेश्वर होते हुए मांडू पहुँचने का था,हम दोनों मेरी बाइक से उज्जैन होते हुए इंदौर आये और यंहा से फिर ओम्कारेंश्वर के लिए शाम को सात बजे निकले ठंड के दिन होने की वजह से हमे अँधेरे ने जल्दी अपनी आगोश में ले लिया,बीच में एक-दो जगह चाय नास्ता करते हुए हम बडवाह पंहुचे बहुत देर चलते रहने के बाद भी जब बडवाह में नर्मदा नदी पर बने पुल को हम लोग ढूंड नहीं पाए तो हम समझ गए कंही हम होना-ना-हो जरूर रास्ता भटक गए है वहीँ एक सज्जन से पता पूछने पर पता चला की हम बडवाह के पास बसे एक गाँव में और यहाँ से वापस बडवाह जाना सोलह किलोमीटर रहेगा लेकिन दूसरी और ही राहत की...
फेसबुक की वाल पोस्ट से इस सपने की दुनिया तक आना यकीनन बहुत ही मजेदार रहा है जब कॉलेज में हुआ करता था तब शायद अच्छा शायर हुआ करता था..पर जिंदगी मे हुये कुछ अनचाहे बदलावो ने जिंदगी कब एक लेखक की कलम में बदल दी समझ ही नही पाया,जब भी वक्त मिलता है वहीं लिखता हूँ जो मन मे होता हैं कभी लोगों की प्रतिक्रिया देख कर नही लिखा अच्छा या बुरा सब कुछ इस किताब के पन्नों में जिंदगी के खट्टे अनुभवों के साथ परोस रहा हूँ,ये सब कहानियाँ कहीं ना कहीं युवाओं की कहानियों से मेल खाती नजर आयेंगी हर तरह से कोशिश की है..