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अपने अंश को समझिये

  अपने अंश को समझिये

बचपन मिटटी की तरह है जिसे पेरेंट्स रूपी कुम्हार अपने हाथो से सँवारने की कोशिश करते हैं यहाँ सँवारने की कोशिश इसलिए भी क्यों की कुछ मिट्टी इतनी अलग होती है जिन्हें कुछ बना पाना मुश्किल होता हैं।जिन्हें खुली जमीन पर बिखर जाना,आसमान में धूल का गुबार बन उड़ जाना ही आता हैं और सच कहूँ ना तो ऐसे ही बचपन की खोज आज आपका बच्चा कर रहा हैं।आपने जमाने की फार्चूय्नर में अपनी रेनो क्वीड दबी होने का डर सीने से लगा लिया हैं और इस डर से लड़ने की कोशिश में आप अपने बच्चों को ढाल बना रहे हैं, इस तरह के व्यवहार से बच्चा कभी आपकी बातो को नही समझ पायेगा.
नाम तो शायद नही जान पाया लेकिन उम्र यही कोई आठ-नौ साल रही होगी,गोल-मोल शरीर फिर भी सुविधा अनुसार नाम अनु रख लेते हैं।
तुझे कितनी बार मना किया है बाहर मत खेला कर।(अनु की मम्मा की आवाज थी अनु के जवाब देने के बाद बता चला)
मम्मा आप कभी बाहर नहीं खेलने देते कोई खा थोड़ी जायेगा।(शायद ये शब्द इतने धीरे थे की बस में और अनु ही सुन पाये)...मैं कमरे मे आ चुका था जो कि ग्राउंड फ्लोर के ठीक साइड में बने एक कोने मे फर्स्ट फ्लोर पर था।लेकिन मन मैं एक सवाल अब भी चुभ रहा था 'क्या अनु को घर में बाहर खेलने पर किसी के उठाये ले जानें का डर बताया जाता है?
शायद मैं अनु या उसके पेरेंट्स को ना कह पांऊ लेकिन मेरा लेखन मुझे इस और लिखने को मजबूर कर रहा हैं।
आपका बच्चा भी इस फ़िक्र को समझ नहीं पायेगा वो इसे पाबंदी समझने लगेगा हो सकता है और भी रहा है आज जो पेरेंट्स वोर्किंग कल्चर बना है उसमे शायद बच्चो के लिए समय निकाल पाना मुश्किल हो गया है और जो समय मिल रहा उसे हम सही तरह से उन्हें दें नहीं पा रहे है..आपका बच्चा भी हो सकता है अनु की तरह बेमतलब की जबान बोलने लगेगा कहीं खुले आसमान में उड़ने को आपकी पांबदी की दीवार लांग जायेगा। मुँह जोरी करने लगेगा अपने आप को अछूत समझने लगे इससे बेहतर हैं उन्हें जानने की कोशिश कीजिए उन्हें छयी-छपा-छयी खेलने दीजिए,बारिश की बूँद होंठों पर लेकर तरह तरह के मुँह बनाकर पीने दीजिए।बचपन हैं उनका, जवाबदारी का बस्ता ना थमा दीजिए वरना एक दिन वो भी अनु की तरह आपकी फिक्र को आपका डर समझकर अपना बचपन मगजमारी का झंझट समझने लगेंगे।
मैं कुछ इस तरह से उनके बचपन की कल्पना करता हूँ जो शायद मैंने आपने और हम सब ने जीया है लेकिन क्या आज आपका बच्चा ऐसे जी पा रहा है,उसे आज़ादी है इस तरह से बचपन में मीठी यादें समेटने की?
उस शाम हवा कुछ नम चल रही थी शायद कहीं बारिश बूँद बनकर धरती के गालों पर चूमने को गिरी होगी,उत्तर की और कोई दो सौ गज मुझसे एक बिजली चमकी शायद कहीं मींलो दूर आसमानी आफत आयी होगी या फिर कोई अब्राहम लिंकल सड़क के किनारे बैठा बिजली आने का इंतजार कर रहा होगा जो बारिश की वजह से अब तक गुल थी।हाँ ये ही होगा क्यों की बिजली ठीक उत्तर में गिरी थी और उत्तर में तो अमरीका हैं जनरल नाॅलेज की किताब में पढ़ा था।पर ये उत्तर उत्तर में ही क्यों हैं?दक्षिण या पूरब में क्यों नही?
मीनू से पूँछूगा,मीनू से तो पेंसिल लेनी है जो उसने गणित वाले पिरियड में तोड दी थी।
कुछ इसी तरह होता है बचपन जिसे ना कहीं खो जाने का डर ना ही दादी नानी की सफेद साड़ी वाली चुडैल के उठा ले जाने का खौफ या फिर गोलु के घर की टपरी की घास बारिश के बवंडर में उड जाने का डर या रिंकु का क्लास में सबसे आगे बैठ जाने का डर।खैर ऐसे डर से हम सब दो चार होते आये हैं..जिंदगी में हम सब ने ऐसी ही किसी बारिश में बीना लड़की के साथ भीग जाने वाले अहसास जीये हैं तरबतर् कपड़ो में पानी से भरे खड्डो में छयी-छपा-छयी खेलने का आंनद रिया की स्कूल ड्रेस पर बचा हुआ बाॅटल का पानी डालना या वो "दो चोटी वाली..मुन्ना जी की साली" वाली चिढावन हम सब वाकिफ है ऐसे बचपन से लेकिन पिछले कुछ समय में जो बदलाव और डर पेरेंट्स में आया है वो शायद बच्चो को ना दिए जाने वाले समय की वजह से ही है,उस दिन के कुछ दिन बाद मैंने अनु की मम्मी में एक बदलाव देखा वो अब रोज शाम को उसके साथ घर की बालकनी में बैठ कर बहुत सारी बाते करती है,नये-नये गेम्स खेलती है..बच्चो में ये बदलाव शायद आपको आज ना दिखे लेकिन आपसे दूरी ही वजह है की वो स्मार्ट फ़ोन्स अपना में बचपन तलाशने की कोशिश करते है,ब्लू व्हेल जैसे खेल में उलझ कर अपनी जिन्दगी खराब कर लेते है मेरी इन बातो में दोनों पहलु शामिल है..एक तो अपने बच्चे को आजादी और दूसरा उस आजादी के सही मायने उसके साथ बैठ कर सिखाना,ताकि कल कोई और बच्चा अनु की तरह अपने पेरेंट्स को इस तरह के जवाब ना दे इसलिए आपको अपनी जिम्मेदारी सही मायनो में समझनी होगी,साथ ही समझना होगा अपने अंश को..अपने अंश को समझिये उसके बेहतर तहजीब,आदर भरे कल को...


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