बात लगभग दो साल पहले ठंड के दिनों की है mba पूरा होने के बाद मैं ज्यादा से
ज्यादा समय इंटरव्यू की तैय्यारी के लिए ही दे रहा था,लेकिन लगातार मुझे मिल रही
असफलताओ से मैं थोडा चिंतित रहने लगा था,ऐसे में मेरे एक दोस्त ने मेरी परेशानी
समझ कर मुझे कंही घूम आने की सलाह दी इससे मेरे दिमाग में चल रही एक जैसी चीजों से
छुटकारा भी था और ठंड के दिनों में कंही घूम आने का अवसर भी,मैंने तुरंत हामी भर
दी हम दोनों अगली ही सुबह घर से (आगर के पास) निकल गए,टूर ओम्कारेश्वर होते हुए मांडू
पहुँचने का था,हम दोनों मेरी बाइक से उज्जैन होते हुए इंदौर आये और यंहा से फिर
ओम्कारेंश्वर के लिए शाम को सात बजे निकले ठंड के दिन होने की वजह से हमे अँधेरे
ने जल्दी अपनी आगोश में ले लिया,बीच में एक-दो जगह चाय नास्ता करते हुए हम बडवाह
पंहुचे बहुत देर चलते रहने के बाद भी जब बडवाह में नर्मदा नदी पर बने पुल को हम
लोग ढूंड नहीं पाए तो हम समझ गए कंही हम होना-ना-हो जरूर रास्ता भटक गए है वहीँ एक
सज्जन से पता पूछने पर पता चला की हम बडवाह के पास बसे एक गाँव में और यहाँ से
वापस बडवाह जाना सोलह किलोमीटर रहेगा लेकिन दूसरी और ही राहत की बात भी
थी,उन्होंने हमे एक छोटा लेकिन दुर्गम रास्ता भी सुझाया जहाँ से हमारी मंजिल महज ९
किलोमीटर दूर थी अब फैसला हम दोनों मित्रों को करना था जो हमने आपसी सहमती किया और
छोटा रास्ता चुन लिया,जब हम रास्ते पर सफ़र कर रहे थे तब एक डर हमें परेशान कर था
कंही हम छोटे रास्ते के चक्कर में बड़ी मुसीबत में ना पड़ जाएँ लेकिन हमने आत्मविश्वास
और आपसी सहयोग से रास्ता तय किया हम नियत समय पर ओम्कारेश्वर पहुँच चुके थे..लगभग
१०.३० बजे हमने होटल में कमरा बुक किया और खाना खाने चले गए,सुबह उठ कर नर्मदा
स्नान और भोले बाबा के दर्शन करने के बाद हम मांडू के लिए रवाना हो गए दो दिन के बाद
जब घर आया तो एक सीख भी अपने साथ हमेशा के लिए लेकर आया..कुछ समय बाद ही में मार्केटिंग
कंपनी के इंटरव्यू में सेलेक्ट हो गया लेकिन इस बार मैंने इंटरव्यू के लिए तैय्यारी
परम्परागत तरीके की बजाय नये तरीको से की जो मेरे उस छोटे से टूर की एक सीख बन कर
मेरी सफलता में हमेशां रहेगी..हमें कभी कभी मंजिल तक पहुँचने के लिए अलग रास्तो को
चुनना पड़ता है जो कठिन तो होते ही साथ में वो आलोचना और डर से भी भरे रहते है
लेकिन हम अपने आत्मविश्वास से नये रास्तो को तलाश कर चलेंगे तो नियत हमे हमारी
मंजिल जरूर मिलेगी....इसलिए कभी कभी मंजिल तक पंहुचने के लिए नये और मुश्किल
रास्ते भी चुनना जरूरी है हमेशा सफलता वहीँ रास्ते नहीं दिलाते जो सालों से लोग
अपनाते आ रहे है..
लोग मेरे साथ रह नही सकते उनको लगता हैं निहायती बदद्तमीज,बद्दिमाग इंसान हूँ और सिर्फ इसलिए नही कह रहा हूँ क्योंकि ये मैं सोचता हूँ बल्कि इसके पीछे एक खास वजह हैं "मैंने जिंदगी में कभी कोई काम सही तरीके से सही करने की कोशिश नही की" लोगों ने मेरे साथ रिश्ते बनाये उन्हें बेडरूम की बेडशीट की तरह इस्तेमाल किया यहाँ बेडरूम की बेडशीट शब्द का उपयोग इसलिए सही हैं क्योंकि कुछ रिश्ते चेहरों से शुरू होकर बिस्तर पर बाहों में बाहें डाले हुये दम तोड़ देते हैं साथ छोड़ देते हैं "बैडरूम की बेडशीट और लोगो से मतलब सिर्फ गंदगी भरी उलझनों से है लिखते समय हरगिज़ नहीं सोचता क्या लिख रहा हूँ पर सच कहूं तो ये वो सड़ांद है जो समाज के दिमाग में आज भी भरी है" और मेरे जैसे नामाकुल "कुल" की लाज भी नही बचा पाते हैं मुझे समझना नामुमकिन था इसलिए लोगों ने कुछ उपनाम दे दिये इसलिए की मैं बुरा इंसान हूँ लेकिन आप जानते हैं जब आदमी चोंट खाता हैं तो फिर वो दुनिया को ठेंगा दिखाने लग जाता हैं क्यों वो जान चुका होता हैं उसे राॅकस्टार के रनबीर कपूर की तरह अंत मे नरगिस मिल जायेगी वो नरगिस जो समाज की ...
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