जब भी कभी पहली दफा हाथ में पेम-पेन्सिल-कलम पकड़ी होगी उस दिन शायद में बहुत रोया होगा,इसलिए नहीं की में लिखने से दर रहा था बल्कि इसलिए कंही में गलत ना लिख दूँ,जब में स्लेट पर "अ" बनाने की कोशिश करता था तो वो हमेशा मेरी टीचर को "8" की तरह ही दिखता था,फिर मैंने धीरे धीरे उस "8" को सही करके "अ" बनाने लगा,सब खुश हुए मेरी टीचर,मेरे पापा,मेरी माँ और शायद अंकिता भी,अंकिता का जिक्र करना यंहा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वो जब भी मुझे कुछ सीखते या करते देखती वो बहुत खुश होती,स्कूल में आने वाले हर बच्चो की तरह ही वो भी थी क्लास में हम दोनों के बेंच के दोनों कोनो के आस पास ही बैठते थे बीच में जो थोड़ी जगह होती थी वो हमारे बस्ते रखने से भर जाती थी वो टिफ़िन नहीं लाती थी वजह कभी उसने मुझे नहीं बताई और मैंने पूछा भी नहीं,मैं अपने टिफिन में उसके लिए भी खाना लेकर आता था या फिर मेरी मम्मा को पता था मेरे साथ अंकिता भी खाना शेयर करती है शायद मैंने ही उन्हें कभी अंकिता के टिफिन ना लाने वाली बात बताई हो,एक दिन लंच ब्रेक में स्कूल के ग्राउंड में लगे गुल्लर के पेड़ के नीचे हम दोनों बैठे कुछ सोच रहे थे वैसे सोच अंकिता रही थी मैं बस उसे सोचते हुए देख रहा था,मेरा वंहा होना ना होने के बराबर ही था मैं उस समय मैदान में खेल रहे दोस्तों को देख रहा था...
अवि तु जनता है ?..."चुप्पी को तोड़ते हुए अंकिता ने मुझसे कुछ कहा"
क्या?..." मैंने उसके सवाल पर अपना सवाल लिखा"
मेरे पापा इन तारों के बीच में है?.."उसने नील सफ़ेद आसमान को देखते हुए कहा"
लेकिन तारे अभी तो दिख नहीं रे..?.."मैंने जवाब कम सवाल ज्यादा किया"
रात को दिखते है ना अवि..तु आना मेरे घर हम छत से देखंगे..."उसने जवाब और घर आने का इनविटेशन दोनों एक साथ देने के अंदाज़े से कहा"
सच में?...मैंने उत्सुकतावश पूछा क्योंकि अब तक अंकिता ने मुझे कभी अपने घर आने के लिए नहीं बोला था"
हां अवि..तु आना आज....इतना कह कर अंकिता ने अपनी आँखों से टपकते पानी को अपनी हथेलियों से पूछ दिया"
रचना समंदर में पैर डाले वो सब समझ जाती है जितना आकाश उसके आँचल में दुबक कर,खेत,खलिहान,माई,बाबा,वो सब कुछ एक पहर में याद आ जाता है..काश अंतिम भी साथ होता क्योंकि ये आखिरी रात वो उसका हाथ थामे बिताना चाहती थी..लेकिन आकाश वैसे ही आया जैसे हर रात के बाद सबेरा आता है,खेत,खलिहान,माई,बाबा,वो सब कुछ वंही था बस रचना समंदर में खो गयी थी,काश अंतिम भी साथ होता..?
रचना समंदर में पैर डाले वो सब समझ जाती है जितना आकाश उसके आँचल में दुबक कर,खेत,खलिहान,माई,बाबा,वो सब कुछ एक पहर में याद आ जाता है..काश अंतिम भी साथ होता क्योंकि ये आखिरी रात वो उसका हाथ थामे बिताना चाहती थी..लेकिन आकाश वैसे ही आया जैसे हर रात के बाद सबेरा आता है,खेत,खलिहान,माई,बाबा,वो सब कुछ वंही था बस रचना समंदर में खो गयी थी,काश अंतिम भी साथ होता..?
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