जिंदगी की पहली दारू पी नहीं,पीला दी जाती है यूँही फ्री में जिसका उधार कितनी ही बार साथ बैठ कर पी लो लेकिन चुकाने का मन नहीं होता या फिर चुकाने की याद नहीं आती,वैसे तो दारु पर लिखना उतना ही बेकार है जितना बस में सफर कर रहे हो और पास में बैठा कोई यात्री आपकी गोद वाश बेसिन समझ कर खा या पीया उड़ेल दे,पर मुझे लिखने के लिए किसी प्रकार की कोई भी इंस्पिरेशन की जरूरत नहीं होती अच्छा लगे या बुरा में बस लिख देता हूँ और शायद हम सब बस इन वजहों से पीछे रह जाते है क्योंकी हम दुसरो की प्रतिक्रिया के इंतज़ार में अपने मन के किस्से,बाते कभी बहार ला ही ना पाते..जिंदगी के पहले हर वो काम जो किये नहीं करवाए जाते है..कभी सुना है किसी बच्चे ने सत्नपान किया नहीं ना माँ ने करवाया पहली बार,आपको याद है जिन्दी की पहली सु-सु खुद ने की थी,किसी ने सु-सु बोलकर करवाई थी,साला मुझे तो दुनिया में लाने के लिए भी नर्स ने सांस दी थी,पोट्टी भी जंहा तक याद है शायद माँ ने आकस्मिक आवाजों के सहारे ही करवाई थी,ऐसा ही कुछ मेरे जहन में किस्सा आता है जब में अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए उज्जैन आया था,सही सोच रहे है आप वही उज्जैन जिसे महाकाल की नगरी,विक्रमादित्य की नगरी (राजा नहीं कहूंगा क्योंकि उज्जैन के राजा तो महाकाल है),भंगेड़ियो की नगरी,गंजेड़ियों की नगरी,डाक्टरों की नगरी,पत्रकारों की नगरी(यंहा हर तीसरा आदमी पत्रकारिता में दक्ष है),वैसे तो यंहा दो-तीन ख़ास चौपाटी है लेकिन पुरे उज्जैन के लौंडो ने हर गली में चौपाटी खोल दी (मोनिका भी ऐसी ही एक गली में रहती है),मुझे शायद बताने की जरूरत ना पड़े लेकिन यहाँ हर दूसरा आदमी दिन में एक बार दाल बाटी जरूर खाता है,बीवी ना बनाये तो वो देवास गेट जा कर महाकाल दाल बाटी पर २७ रुपये में (नहीं अब शायद gst में भाव बड़ गए होंगे) जा कर खा ही लेता है! हम भी भटकते हुए पहुँच ही जाते थे असल में दाल बाटी खाना तो बहाना था मकसद पैसे बचाना था,मेरे जीवन में वैसे तो रोज गंभीर बाते होती थी लेकिन में गंभीर डेम की तरह अपने मन को बड़ा रख सब भुलने की कोशिश करता था,महाकाल की नगरी और महाकाल इंस्टिट्यूट मेरी जिंदगी के अहम हिस्से है लेकिन किसम्मत देखो हॉस्टल भी मिला तो महाकाल बॉयज हॉस्टल या उज्जैन का मात्र इकलौता हॉस्टल है जिसके बाजु में दो गर्ल्स हॉस्टल है एक जिसमे ज्योति रहती थी और दुसरा जिसमे ज्योति जैसी प्यारी लड़किया रहती थी!जिन्हे हम सब लौंडे बिना रोक-टोक ताड़ सकते थे..हॉस्टल का पहला दिन भी लिख सकता हूँ लेकिन वो कुछ ख़ास नहीं,
मैं उस दिन थका हुआ था और फिर कोई दोस्त भी नहीं था वंहा,मैं बोर हो रहा था उस शाम जरूर मैं ज्योति को लेकर घूमने गया था मुझे उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कोठी रोड के वाकिंग ट्रैक पर घूमना अच्छा लगता था और वैसे भी वो सबसे अच्छी जगह थी जंहा हम कुछ नए तो कुछ पुराने,कुछ बूढ़े तो कुछ जवान कपल को देख कर उनमे अपना भविष्य ढूंढ़ने की बेमतलब कोशिश करते रहते..
तु जब ६० साल का हो जायेगा ऐसे ही दिखेगा बाबु..."उसने अपनी हंसी को मेरे नाराज़ होने के डर से दबाते हुए कहा"
मैंने हमेशा की तरह उसके दाहिने हाथ को अपने होंटो से चुम कर दिलासा दी.."मैं उसके साथ बाते काम और इजहारे इश्क़ ज्यादा करता था"
दो मिनिट के लिए सब शांत हो चुका था मैंने अपनी तर्जनी से उसके बालो को सुलझाते हुए उसके नरम लबों पर अपने मुस्कराते हुए होंठ रख दिए सब कुछ ठीक चल ही रहा था की उसने अपने आप को अलग करते हुए मुझसे वही पूछा जो दुनिया की हर लड़की प्यार होने के बाद बड़ी मासूमियत से पूछती है...
अगर हमारी शादी नहीं हुयी तो तु मुझे भुला कर अपनी लाइफ में आगे बड़ जाना..."उसने मेरी आँखों को पढ़ते हुए कहा"
लो हो गयी हमारी शादी.."मैंने भी उसके गले में अपने हाथो की वरमाला डालते हुए कहा"
तु मज़ाक मत किया मैं पहले ही परेशान हूँ..."उसने वरमाला तोड़ते हुए कहा"
क्यों?..."मैंने उसके बालो को सहलाते हुए पूछा"
मुझे डर है यर घर वाले नहीं मानेंगे.."उसने मेरे बाएं हथेली में उंगलिया फंसाते हुए कहा"
लेकिन मुझे इन सब पर अभी कोई बात नहीं करना..."मैंने थोड़ा अजीब तरीके से इस बात को टालने के लिए कहा"
उस शाम मैंने आखिरी बार उसके माथे को चूमते हुए हॉस्टल चलने के लिए कहा...
समय ९ बजे शाम..
खाना खा कर मेस से आने के बाद जैसे ही हॉस्टल आया!सीढ़ियों पर सब पुराने स्टूंडेंट मिलकर नए स्टूंडेंट का इंट्रो ले रहे थे..ये एक प्राइवेट हॉस्टल था इसलिए यंहा आप कौन सी क्लास से है सीनियर जूनियर तय नहीं होता यंहा आप कितने साल से रह रहे है उस बात से रैगिंग का मीनू decide होता है...
मैं भी सबकी तरह लाइन में जा कर खड़ा हो गया मेरे आगे एक गोरा सा लड़का खड़ा था और पीछे एक मोटा सा बिहारी लड़का जिसके डर से कांपते हुए शरीर से शायद भूकंप के आने के संकेत मिल रहे थे...
एक एक करके अपना इंट्रो देते जाओ और हां आखिरी में सब अपने अपने रूम अकेले ही जाना..."चश्मे वाले सीनियर ने कहा"
अबे क्या माज़रा है और हम सब के रूम में एक पार्टनर भी तो फिर अकेले कैसे.."मैंने आगे खड़े लड़के से पूछा"
नहीं भईया इन्होने इंट्रो पहले से सेट किया आप ध्यान से देखो कोई एक रूम से नहीं...."आगे खड़े लड़के ने कहा"
हां बेंचो साले हरामी है,हमारे रूम पार्टनर पहले ही हलाल हो चुके है..."मैंने अपनी अकड़ में कहा"
वैसे तेरा नाम क्या है?..मैंने गोरे लड़के से पूछा"
भैय्या सुमन सौरभ...
अबे भोसड़ी वाले तुझसे नहीं पूछा..."मैंने मोटे लड़के से कहा"
भैय्या आदित्य..."गोर लड़के ने जवाब दिया"
जिनके इंट्रो होते गए वो अपने रूम में जाते गए और उनके रूम से एक डरावनी सी आवाज़ आती रही,मैं स्थिति को भांप गया था,सब कुछ ठीक नहीं है मेरे दिमाग के कोने ने संकेतो में समझने की कोशिश की...१०-१२ इंट्रो होने के बाद...
ओऐ ब्लू शर्ट..."गुटका खाते सीनियर ने आवाज़ लगायी"
मैंने चारो तरफ देखा सब मुझे देख रहे थे मैंने अब अपने आपको देखा...मर गए बेंचो आज यही शर्ट मिला था पहने को..."मैंने अपने आप से कहा",मैंने अपने आपसे हिम्मत जुटाकर कहा,मैंने अपना घंटा पकड़ते हुए कहा..मैंने हर वो जतन किया जो इस मुसीबत से बच पायें...
अरे इसे मैं जनता हूँ और ये जूनियर नहीं है,मेरे कॉलेज में आया था एम.बी.ए की कॉउंसलिंग में..लेकिन इसने इंट्रेस्ट नहीं दिखाया इसे शायद बाद में एम.आई.टी मिल गया..इतना सब कुछ वो गुटका खाये हुए सीनियर ने सब एक साथ बोल दिया,मुझे बचने का कोई सहारा मिलता देख मैंने उनकी तरफ हाथ बढ़ाकर अपना नाम बताया.
हैलो सर माय सेल्फ विजय...
हम्म्म..मेरा नाम प्रस्सन शुक्ला है और मैं अल्पाइन कॉलेज मैं मार्केटिंग फैक्ल्टी हूँ.."गुटका गटकते हुए कहा"
सॉरी सर मैंने आपको पहचाना नहीं,लेकिन आप भी यहाँ रहते है मेरा मतलब हॉस्टल में..."मैंने बात को भैंस की पुंछ की तरह हिलाते हुए पूछा"
फिर कभी सुनाऊँगा.."हॅसते हुए बात टाल गए"
मैं रैगिंग से तो बच गया था लेकिन आदित्य और सौरभ नहीं..हम सब अपने अपने कमरों में थे,जिनके साथ जो हुआ सब ने अपने पास रख कर रात चुप चाप सोने में ही काटना ठीक समझा,मैंने भी दो जरूरी काम निपटा लिए..एक अपने रूम पार्टनर से जान पहचान और दुसरा अपनी जान से बार मुझे पहचाने जाने का बेवकूफी भरा सवाल पूछना..हम दोनों ने एक दूसरे को आई लव यू कह कर सोना ही ठीक समझा..अगली सुबह हॉस्टल में भागमभाग मची थी सब अपने अपने कॉलेज टाइम पर कॉलेज पहुंचने की तैयारी में लगे थे क्योकि सब एक्स्ट्रा माइल्ड पिने के लिए पचास रुपये खर्च कर सकते है लेकिन देर से पहुंचने की pelantry फीस नहीं दे सकते...
एक सप्ताह ना जाने कैसे बीत गया मुझे पता भी नहीं चला और वजह भी साफ़ थी!जब आप किसी ऐसी लड़के के चक्कर (हां चक्कर ही क्योकि जो प्यार मुक्कल नहीं हो पाते वो ऐसे ही चक्कर वाले नाम की शक्ल ले लेते है,और जिनके प्यार,प्यार वाले प्यार की तरह मुक्कमल हो जाते उन्हें प्यार का नाम मिल जाता है) में हो जो आपकी क्लासमेट हो तो क्लास में उसको देखते हुए बोरिंग लेक्चर में भी इंट्रेस्ट आने लग जाता है...हर समय वो और मैं साथ होते थे..मुझे पता ही नहीं चला कब कॉलेज,हॉस्टल और ज्योति के साथ रहते रहते ३ महीने बीत चुके थे..पहले सेमेस्टर के एग्जाम भी नज़दीक थे..हॉस्टल में पड़ोस वाले हॉस्टल को ताड़ने का काम भी बंद हो चुका था आधे से ज्यादा कमरों के दरवाजे अब बस दिन में एक या दो बार ही खुलते थे और ऐसे कमरों के गेट बेवजह बजाने का अपना ही मज़ा था..कंही बार बॉयज हॉस्टल की चड्डिया गर्ल्स हॉस्टल पर सूखा दी जाती और उतनी गन्दी गाली से सब लौंडो की माँ बैन लौंडिया करती नज़र आती....हॉस्टल में बंद का मतलब होता छुपा कर लाना सिगरेट,दारू,बियर,रम,विस्की,जो भी लेना हो सब छुपा कर लाया जाता जैसे इनके बाप शुरू से तस्करी में एक्सपर्ट थे...
ऐसे ही एक दिन संदीप और अय्यपन मेरे पास आये..बता दूँ संदीप भाई पुलिस और अय्यपन NDA की तैयारी के लिए आये थे दोनों ही राजपूत थे इसलिए इनके लिए आसान था वो सब करना जो हमारे हॉस्टल में बंद मने छुपा कर लाने वाला था.....
भैय्या आज रात में पार्टी का प्लान बनाया है आप आओगे क्या?..."अय्यपन ने मुझसे पूछा"
कहाँ जा रहे और कौन कौन है साथ में......"मैंने ना कहने के अंदाजे में पूछा"
कोई नहीं में और संदीप भैय्या...अय्यपन ने शायद मुझे साथ मिलाने के लिए मुझसे किसी और के बारे में नहीं कहा लेकिन उस रात पूरा हॉस्टल उल्टियां कर रहा था ज्यादा पीने की वजह से और सुबह ये बात हॉस्टल वाली आंटी को पता चली तो उन्होंने inquery बैठा कर सब के कमरे से बंद चीजों को बहार निकलवा लिया....सब सीनियर लड़को ने अपनी जमा पूंजी जाते देख आंटी को मन ही मन गालियाँ दी लेकिन दूसरी तरफ नए लड़को को इस बात की राहत थी की वो इन सब में पड़ने से बच गए...करीब करीब से चैन से चलता रहा मेरी एग्जाम भी ज्योति को पढ़ाने खुद पढ़ने में ख़त्म हो चुकी थी इन बीते चार महीनो में अगर कुछ बदला था तो वो ज्योति का बेहेवियर था और गलती उसकी भी नहीं थी हमारे बीच सब कुछ बहुत अच्छा था जैसे एक हिंदी मूवी में होता है लेकिन ड्रामा तो हमारी लाइफ में भी था और वो फॅमिली ड्रामा हम दोनों इन सब के बीच झेलते भी आ रहे थे..एक दिन ऐसे सुबह सुबह हमुखेड़ी चले गए जंहा से बैठ उज्जैन ऐसे लगती है मानो सब थम गया किसी के आने के इंतज़ार में,मानों आकाश से इतना ही प्यारा नज़ारा धरती का दिख रहा होगा,मानों बाबा महाकाल हमे आशीर्वाद दे रहे हो...हम दोनों बैठ कर आस्मां में उड़ते पंछियो के देख रहे थे जो दो दो के जोड़ो में अठखेलियाँ कर रहे थे....
मुझे गले से लगा ले मैं नहीं चाहती तु मुझसे कभी अलग हो...."उसने उस ख़ामोशी भरी चुप्पी को तोड़ते हुए कहा"
लेकिन हम तो हमेशा साथ ही रहेंगे बेटु..."मैंने उसे बाँहो में लेते हुए कहा"
घंटे भर की ख़ामोशी जो बनी थी अब वो उसकी आँखों से झलक आयी थी..मैंने उसके हाथो को अपने हाथो में ले कर उंगलियों को एक दूसरे में उलझाते हुए ऐसे महसूस करवाया की हम कभी अलग नहीं होंगे....उस रात में घंटो तक चुप चाप कमरे में रोता रहा..सेल फ़ोन पर ज्योति के ३८ मिस्ड कॉल थे..सुबह उठ कर मैंने वो सब कुछ करने का फैसला किया जो हम दोनों के लिए सही होता..मैंने ज्योति से मिला बंद कर दिया था..लेकिन पहले ही दिन सब कुछ ख़त्म होने जैसा लग रहा था..मोबाइल मैंने बंद कर दिया था,कॉलेज गया नहीं था,सुबह से बस ऐसा लग रहा था जैसे जिंदगी की किताब के सारे पैज किसी ने फाड़ दिए हो और वो आखिरी पेज छोड़ दिया जिस पर चुतिया लिखा हो..मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं किस वजह से चुप हूँ अगर हम दोनों चाहे तो शादी करने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन हम दोनों में से कोई एक तो था जो नहीं चाहता ये शादी बिना घर वालो की कभी ना मिलने वाली इजाजत के बगैर हो..मैंने शाम होते ही कुछ अलग ढूंढ़ने की कोशिश में रात में झाँकने की कोशिश की.तभी मेरे रूम के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी...
भईया..भईया.....
कौन है?...मैंने अपने मायूस चेहरे पर झूठ मुठ का मखमली ख़ुशी का लबादा ओढ़ते हुए पूछा"
भईया..अय्यपन
हां बोल.."मैंने दरवाजा खोल कर पूछा"
संदीप भईया बुला रहे है..."उसने उसी अंदाज में कहा जैसे मेरे हाव भाव पढ़ लिए हो"
चल मैं आता हूँ...."मैंने अय्यपन को चलने का इशारा करते हुए कहा"
कैसे है संदीप भाई..."कमरे जाते ही पूछा"
हम तो ठीक है आप सुनाओ...."संदीप भाई ने बैठने का इशारा करते हुए कहा"
मैं भी ठीक हूँ.."मैंने उदास लगने वाले चेहरे पर हंसी लपेटते हुए कहा"
देख रहे कुछ दिनों से आपके हाव भाव में जो परिवर्तन आया है..."अय्यपन को कुछ लाने का इशारा करते हुए कहा"
नहीं संदीप भाई बस ऐसे यार प्यार परिवार को ले कर थोड़ा टेंशन में है..."मैंने भी दर्द बाँटने के अंदाज से कहा"
चलो तो फिर आपकी समस्या आज के लिए कम कर देते है...." संदीप भाई ने ब्लेंडर्स प्राइड का ढक्कन खोलते हुए कहा"
हां भईया ज्योति दीदी हॉस्टल के बहार बहुत टाइम खड़े थे शाम को..."अय्यपन ने चिप्पस के पैकेट फाड़ते हुए कहा"
कब?...मैंने चिंतित हो कर पूछा"
आज शाम को.."उसने चकना प्लेट में निकालते हुए कहा"
लीजिये और थोड़े टाइम के लिए इस प्यार परिवार ट्रेजेडी,ड्रामा अबको भूल जाइये..."संदीप भाई ने दारु का ग्लास मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा"
माफ़ करना संदीप भाई लेकिन में नहीं पीता..."मैंने वंहा से चलने के इरादे से कहा"
पीते तो हम भी नहीं है लेकिन एक बार ले कर देखिये अच्छा लगेगा,प्यार परिवार,गिर्ल्फ्रैंड,फ्रैंड,सब इसके आगे बेकार है इसको लेने के बाद आदमी खुद में बादशाह और दुसरो को जनता समझने लग जाता है..और वैसे भी हम तुम्हारे लिए ब्लंडर्स प्राइड मंगवाए है सुना है तुम्हारे लैपटॉप पर भी ब्लेंडर्स प्राइड का स्क्रीन सेवर है" संदीप भाई ने इतना सब कुछ एक ही बार में कह दिया और साथ में मेरे हाथ में ग्लास देते हुए कहा "गटक जाओ बहुत छोटा बनाये है"...
मेरे हाथ में दारू थी और आँखों के सामने ज्योति का चेहरा याद आ रहा था लेकिन दिमाग ज्योति को भूलना चाह रहा था..इसी उलझन में कब पैक ख़त्म हो गया और हाथ चिप्पस,चकने के मसलो में सन गए..तीनो ने मिलकर पूरी बोतल ख़त्म की,मैंने सब की माँ बैन की,अय्यपन ने उल्टियां की,संदीप भाई ने हम दोनों को जैसे तैसे चुप करवा कर अपने अपने कमरे तक छोड़ा..रात कैसे निकली ये तो मुझे बस हॉस्टल के कुछ एक लोगो के मुँह से सुनने को मिला...
रात ज्यादा लगा लिए थे क्या?..."सौरभ ने पूछा"
गालियाँ बहुत देते हो आप?..."आदित्य ने कहा"
आपको बहुत जल्दी चढ़ जाती है?..."देवेंद्र ने ज्ञान पेलते हुए कहा"
जब सूट नहीं होती तो पीते क्यों हो ?...."शुक्ला सर ने कहा"
ऐसे बहुत से सवाल अलग अलग रूम नंबर के साथ बाहर आ रहे थे रविवार की सुबह थी सब फ्री थे और हमने दारू शनिवार को पी थी..मैंने सब के जवाबो के बीच उन दो लोगो को ढूंढा जिनकी वजह से मैं इन सब सवालो में उलझा था..लेकिन दोनों ही अलसुबह घर के लिए निकल चुके थे..सवालो के जवाबो की जिम्मेदारी मेरी थी..और मैंने जिंदगी में आज तक जिम्मेदारी ली ही नहीं..बस टालने के लिए सब को एक जवाब दे दिया..."जिंदगी की पहली दारू पी नहीं,पीला दी जाती है"
दो साल निकल गए प्यार परिवार,ज्योति और मैं हमने सब कुछ जिया,सब कुछ एक साथ किया हर लम्हे में एक दूसरे के साथ रहे लेकिन प्यार मुक्कमल ना हो सका...ज्योति अपनी जिंदगी में खुश,मैं अपनी समस्याओ में उलझा हुआ खुश हूँ,संदीप भाई घर है,अय्यपन चेन्नई में ट्रेनिंग पर है,आदित्य हॉस्टल है..सब अपने अपने कामो में मस्त है अब हममें से किसी को दारू जिंदगी की पहली दारू नहीं लगती और ना ही मुझे प्यार अब जिंदगी का पहला प्यार लगता है.......
लेखन-विजयराज पाटीदार
मैं उस दिन थका हुआ था और फिर कोई दोस्त भी नहीं था वंहा,मैं बोर हो रहा था उस शाम जरूर मैं ज्योति को लेकर घूमने गया था मुझे उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कोठी रोड के वाकिंग ट्रैक पर घूमना अच्छा लगता था और वैसे भी वो सबसे अच्छी जगह थी जंहा हम कुछ नए तो कुछ पुराने,कुछ बूढ़े तो कुछ जवान कपल को देख कर उनमे अपना भविष्य ढूंढ़ने की बेमतलब कोशिश करते रहते..
तु जब ६० साल का हो जायेगा ऐसे ही दिखेगा बाबु..."उसने अपनी हंसी को मेरे नाराज़ होने के डर से दबाते हुए कहा"
मैंने हमेशा की तरह उसके दाहिने हाथ को अपने होंटो से चुम कर दिलासा दी.."मैं उसके साथ बाते काम और इजहारे इश्क़ ज्यादा करता था"
दो मिनिट के लिए सब शांत हो चुका था मैंने अपनी तर्जनी से उसके बालो को सुलझाते हुए उसके नरम लबों पर अपने मुस्कराते हुए होंठ रख दिए सब कुछ ठीक चल ही रहा था की उसने अपने आप को अलग करते हुए मुझसे वही पूछा जो दुनिया की हर लड़की प्यार होने के बाद बड़ी मासूमियत से पूछती है...
अगर हमारी शादी नहीं हुयी तो तु मुझे भुला कर अपनी लाइफ में आगे बड़ जाना..."उसने मेरी आँखों को पढ़ते हुए कहा"
लो हो गयी हमारी शादी.."मैंने भी उसके गले में अपने हाथो की वरमाला डालते हुए कहा"
तु मज़ाक मत किया मैं पहले ही परेशान हूँ..."उसने वरमाला तोड़ते हुए कहा"
क्यों?..."मैंने उसके बालो को सहलाते हुए पूछा"
मुझे डर है यर घर वाले नहीं मानेंगे.."उसने मेरे बाएं हथेली में उंगलिया फंसाते हुए कहा"
लेकिन मुझे इन सब पर अभी कोई बात नहीं करना..."मैंने थोड़ा अजीब तरीके से इस बात को टालने के लिए कहा"
उस शाम मैंने आखिरी बार उसके माथे को चूमते हुए हॉस्टल चलने के लिए कहा...
समय ९ बजे शाम..
खाना खा कर मेस से आने के बाद जैसे ही हॉस्टल आया!सीढ़ियों पर सब पुराने स्टूंडेंट मिलकर नए स्टूंडेंट का इंट्रो ले रहे थे..ये एक प्राइवेट हॉस्टल था इसलिए यंहा आप कौन सी क्लास से है सीनियर जूनियर तय नहीं होता यंहा आप कितने साल से रह रहे है उस बात से रैगिंग का मीनू decide होता है...
मैं भी सबकी तरह लाइन में जा कर खड़ा हो गया मेरे आगे एक गोरा सा लड़का खड़ा था और पीछे एक मोटा सा बिहारी लड़का जिसके डर से कांपते हुए शरीर से शायद भूकंप के आने के संकेत मिल रहे थे...
एक एक करके अपना इंट्रो देते जाओ और हां आखिरी में सब अपने अपने रूम अकेले ही जाना..."चश्मे वाले सीनियर ने कहा"
अबे क्या माज़रा है और हम सब के रूम में एक पार्टनर भी तो फिर अकेले कैसे.."मैंने आगे खड़े लड़के से पूछा"
नहीं भईया इन्होने इंट्रो पहले से सेट किया आप ध्यान से देखो कोई एक रूम से नहीं...."आगे खड़े लड़के ने कहा"
हां बेंचो साले हरामी है,हमारे रूम पार्टनर पहले ही हलाल हो चुके है..."मैंने अपनी अकड़ में कहा"
वैसे तेरा नाम क्या है?..मैंने गोरे लड़के से पूछा"
भैय्या सुमन सौरभ...
अबे भोसड़ी वाले तुझसे नहीं पूछा..."मैंने मोटे लड़के से कहा"
भैय्या आदित्य..."गोर लड़के ने जवाब दिया"
जिनके इंट्रो होते गए वो अपने रूम में जाते गए और उनके रूम से एक डरावनी सी आवाज़ आती रही,मैं स्थिति को भांप गया था,सब कुछ ठीक नहीं है मेरे दिमाग के कोने ने संकेतो में समझने की कोशिश की...१०-१२ इंट्रो होने के बाद...
ओऐ ब्लू शर्ट..."गुटका खाते सीनियर ने आवाज़ लगायी"
मैंने चारो तरफ देखा सब मुझे देख रहे थे मैंने अब अपने आपको देखा...मर गए बेंचो आज यही शर्ट मिला था पहने को..."मैंने अपने आप से कहा",मैंने अपने आपसे हिम्मत जुटाकर कहा,मैंने अपना घंटा पकड़ते हुए कहा..मैंने हर वो जतन किया जो इस मुसीबत से बच पायें...
अरे इसे मैं जनता हूँ और ये जूनियर नहीं है,मेरे कॉलेज में आया था एम.बी.ए की कॉउंसलिंग में..लेकिन इसने इंट्रेस्ट नहीं दिखाया इसे शायद बाद में एम.आई.टी मिल गया..इतना सब कुछ वो गुटका खाये हुए सीनियर ने सब एक साथ बोल दिया,मुझे बचने का कोई सहारा मिलता देख मैंने उनकी तरफ हाथ बढ़ाकर अपना नाम बताया.
हैलो सर माय सेल्फ विजय...
हम्म्म..मेरा नाम प्रस्सन शुक्ला है और मैं अल्पाइन कॉलेज मैं मार्केटिंग फैक्ल्टी हूँ.."गुटका गटकते हुए कहा"
सॉरी सर मैंने आपको पहचाना नहीं,लेकिन आप भी यहाँ रहते है मेरा मतलब हॉस्टल में..."मैंने बात को भैंस की पुंछ की तरह हिलाते हुए पूछा"
फिर कभी सुनाऊँगा.."हॅसते हुए बात टाल गए"
मैं रैगिंग से तो बच गया था लेकिन आदित्य और सौरभ नहीं..हम सब अपने अपने कमरों में थे,जिनके साथ जो हुआ सब ने अपने पास रख कर रात चुप चाप सोने में ही काटना ठीक समझा,मैंने भी दो जरूरी काम निपटा लिए..एक अपने रूम पार्टनर से जान पहचान और दुसरा अपनी जान से बार मुझे पहचाने जाने का बेवकूफी भरा सवाल पूछना..हम दोनों ने एक दूसरे को आई लव यू कह कर सोना ही ठीक समझा..अगली सुबह हॉस्टल में भागमभाग मची थी सब अपने अपने कॉलेज टाइम पर कॉलेज पहुंचने की तैयारी में लगे थे क्योकि सब एक्स्ट्रा माइल्ड पिने के लिए पचास रुपये खर्च कर सकते है लेकिन देर से पहुंचने की pelantry फीस नहीं दे सकते...
एक सप्ताह ना जाने कैसे बीत गया मुझे पता भी नहीं चला और वजह भी साफ़ थी!जब आप किसी ऐसी लड़के के चक्कर (हां चक्कर ही क्योकि जो प्यार मुक्कल नहीं हो पाते वो ऐसे ही चक्कर वाले नाम की शक्ल ले लेते है,और जिनके प्यार,प्यार वाले प्यार की तरह मुक्कमल हो जाते उन्हें प्यार का नाम मिल जाता है) में हो जो आपकी क्लासमेट हो तो क्लास में उसको देखते हुए बोरिंग लेक्चर में भी इंट्रेस्ट आने लग जाता है...हर समय वो और मैं साथ होते थे..मुझे पता ही नहीं चला कब कॉलेज,हॉस्टल और ज्योति के साथ रहते रहते ३ महीने बीत चुके थे..पहले सेमेस्टर के एग्जाम भी नज़दीक थे..हॉस्टल में पड़ोस वाले हॉस्टल को ताड़ने का काम भी बंद हो चुका था आधे से ज्यादा कमरों के दरवाजे अब बस दिन में एक या दो बार ही खुलते थे और ऐसे कमरों के गेट बेवजह बजाने का अपना ही मज़ा था..कंही बार बॉयज हॉस्टल की चड्डिया गर्ल्स हॉस्टल पर सूखा दी जाती और उतनी गन्दी गाली से सब लौंडो की माँ बैन लौंडिया करती नज़र आती....हॉस्टल में बंद का मतलब होता छुपा कर लाना सिगरेट,दारू,बियर,रम,विस्की,जो भी लेना हो सब छुपा कर लाया जाता जैसे इनके बाप शुरू से तस्करी में एक्सपर्ट थे...
ऐसे ही एक दिन संदीप और अय्यपन मेरे पास आये..बता दूँ संदीप भाई पुलिस और अय्यपन NDA की तैयारी के लिए आये थे दोनों ही राजपूत थे इसलिए इनके लिए आसान था वो सब करना जो हमारे हॉस्टल में बंद मने छुपा कर लाने वाला था.....
भैय्या आज रात में पार्टी का प्लान बनाया है आप आओगे क्या?..."अय्यपन ने मुझसे पूछा"
कहाँ जा रहे और कौन कौन है साथ में......"मैंने ना कहने के अंदाजे में पूछा"
कोई नहीं में और संदीप भैय्या...अय्यपन ने शायद मुझे साथ मिलाने के लिए मुझसे किसी और के बारे में नहीं कहा लेकिन उस रात पूरा हॉस्टल उल्टियां कर रहा था ज्यादा पीने की वजह से और सुबह ये बात हॉस्टल वाली आंटी को पता चली तो उन्होंने inquery बैठा कर सब के कमरे से बंद चीजों को बहार निकलवा लिया....सब सीनियर लड़को ने अपनी जमा पूंजी जाते देख आंटी को मन ही मन गालियाँ दी लेकिन दूसरी तरफ नए लड़को को इस बात की राहत थी की वो इन सब में पड़ने से बच गए...करीब करीब से चैन से चलता रहा मेरी एग्जाम भी ज्योति को पढ़ाने खुद पढ़ने में ख़त्म हो चुकी थी इन बीते चार महीनो में अगर कुछ बदला था तो वो ज्योति का बेहेवियर था और गलती उसकी भी नहीं थी हमारे बीच सब कुछ बहुत अच्छा था जैसे एक हिंदी मूवी में होता है लेकिन ड्रामा तो हमारी लाइफ में भी था और वो फॅमिली ड्रामा हम दोनों इन सब के बीच झेलते भी आ रहे थे..एक दिन ऐसे सुबह सुबह हमुखेड़ी चले गए जंहा से बैठ उज्जैन ऐसे लगती है मानो सब थम गया किसी के आने के इंतज़ार में,मानों आकाश से इतना ही प्यारा नज़ारा धरती का दिख रहा होगा,मानों बाबा महाकाल हमे आशीर्वाद दे रहे हो...हम दोनों बैठ कर आस्मां में उड़ते पंछियो के देख रहे थे जो दो दो के जोड़ो में अठखेलियाँ कर रहे थे....
मुझे गले से लगा ले मैं नहीं चाहती तु मुझसे कभी अलग हो...."उसने उस ख़ामोशी भरी चुप्पी को तोड़ते हुए कहा"
लेकिन हम तो हमेशा साथ ही रहेंगे बेटु..."मैंने उसे बाँहो में लेते हुए कहा"
घंटे भर की ख़ामोशी जो बनी थी अब वो उसकी आँखों से झलक आयी थी..मैंने उसके हाथो को अपने हाथो में ले कर उंगलियों को एक दूसरे में उलझाते हुए ऐसे महसूस करवाया की हम कभी अलग नहीं होंगे....उस रात में घंटो तक चुप चाप कमरे में रोता रहा..सेल फ़ोन पर ज्योति के ३८ मिस्ड कॉल थे..सुबह उठ कर मैंने वो सब कुछ करने का फैसला किया जो हम दोनों के लिए सही होता..मैंने ज्योति से मिला बंद कर दिया था..लेकिन पहले ही दिन सब कुछ ख़त्म होने जैसा लग रहा था..मोबाइल मैंने बंद कर दिया था,कॉलेज गया नहीं था,सुबह से बस ऐसा लग रहा था जैसे जिंदगी की किताब के सारे पैज किसी ने फाड़ दिए हो और वो आखिरी पेज छोड़ दिया जिस पर चुतिया लिखा हो..मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं किस वजह से चुप हूँ अगर हम दोनों चाहे तो शादी करने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन हम दोनों में से कोई एक तो था जो नहीं चाहता ये शादी बिना घर वालो की कभी ना मिलने वाली इजाजत के बगैर हो..मैंने शाम होते ही कुछ अलग ढूंढ़ने की कोशिश में रात में झाँकने की कोशिश की.तभी मेरे रूम के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी...
भईया..भईया.....
कौन है?...मैंने अपने मायूस चेहरे पर झूठ मुठ का मखमली ख़ुशी का लबादा ओढ़ते हुए पूछा"
भईया..अय्यपन
हां बोल.."मैंने दरवाजा खोल कर पूछा"
संदीप भईया बुला रहे है..."उसने उसी अंदाज में कहा जैसे मेरे हाव भाव पढ़ लिए हो"
चल मैं आता हूँ...."मैंने अय्यपन को चलने का इशारा करते हुए कहा"
कैसे है संदीप भाई..."कमरे जाते ही पूछा"
हम तो ठीक है आप सुनाओ...."संदीप भाई ने बैठने का इशारा करते हुए कहा"
मैं भी ठीक हूँ.."मैंने उदास लगने वाले चेहरे पर हंसी लपेटते हुए कहा"
देख रहे कुछ दिनों से आपके हाव भाव में जो परिवर्तन आया है..."अय्यपन को कुछ लाने का इशारा करते हुए कहा"
नहीं संदीप भाई बस ऐसे यार प्यार परिवार को ले कर थोड़ा टेंशन में है..."मैंने भी दर्द बाँटने के अंदाज से कहा"
चलो तो फिर आपकी समस्या आज के लिए कम कर देते है...." संदीप भाई ने ब्लेंडर्स प्राइड का ढक्कन खोलते हुए कहा"
हां भईया ज्योति दीदी हॉस्टल के बहार बहुत टाइम खड़े थे शाम को..."अय्यपन ने चिप्पस के पैकेट फाड़ते हुए कहा"
कब?...मैंने चिंतित हो कर पूछा"
आज शाम को.."उसने चकना प्लेट में निकालते हुए कहा"
लीजिये और थोड़े टाइम के लिए इस प्यार परिवार ट्रेजेडी,ड्रामा अबको भूल जाइये..."संदीप भाई ने दारु का ग्लास मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा"
माफ़ करना संदीप भाई लेकिन में नहीं पीता..."मैंने वंहा से चलने के इरादे से कहा"
पीते तो हम भी नहीं है लेकिन एक बार ले कर देखिये अच्छा लगेगा,प्यार परिवार,गिर्ल्फ्रैंड,फ्रैंड,सब इसके आगे बेकार है इसको लेने के बाद आदमी खुद में बादशाह और दुसरो को जनता समझने लग जाता है..और वैसे भी हम तुम्हारे लिए ब्लंडर्स प्राइड मंगवाए है सुना है तुम्हारे लैपटॉप पर भी ब्लेंडर्स प्राइड का स्क्रीन सेवर है" संदीप भाई ने इतना सब कुछ एक ही बार में कह दिया और साथ में मेरे हाथ में ग्लास देते हुए कहा "गटक जाओ बहुत छोटा बनाये है"...
मेरे हाथ में दारू थी और आँखों के सामने ज्योति का चेहरा याद आ रहा था लेकिन दिमाग ज्योति को भूलना चाह रहा था..इसी उलझन में कब पैक ख़त्म हो गया और हाथ चिप्पस,चकने के मसलो में सन गए..तीनो ने मिलकर पूरी बोतल ख़त्म की,मैंने सब की माँ बैन की,अय्यपन ने उल्टियां की,संदीप भाई ने हम दोनों को जैसे तैसे चुप करवा कर अपने अपने कमरे तक छोड़ा..रात कैसे निकली ये तो मुझे बस हॉस्टल के कुछ एक लोगो के मुँह से सुनने को मिला...
रात ज्यादा लगा लिए थे क्या?..."सौरभ ने पूछा"
गालियाँ बहुत देते हो आप?..."आदित्य ने कहा"
आपको बहुत जल्दी चढ़ जाती है?..."देवेंद्र ने ज्ञान पेलते हुए कहा"
जब सूट नहीं होती तो पीते क्यों हो ?...."शुक्ला सर ने कहा"
ऐसे बहुत से सवाल अलग अलग रूम नंबर के साथ बाहर आ रहे थे रविवार की सुबह थी सब फ्री थे और हमने दारू शनिवार को पी थी..मैंने सब के जवाबो के बीच उन दो लोगो को ढूंढा जिनकी वजह से मैं इन सब सवालो में उलझा था..लेकिन दोनों ही अलसुबह घर के लिए निकल चुके थे..सवालो के जवाबो की जिम्मेदारी मेरी थी..और मैंने जिंदगी में आज तक जिम्मेदारी ली ही नहीं..बस टालने के लिए सब को एक जवाब दे दिया..."जिंदगी की पहली दारू पी नहीं,पीला दी जाती है"
दो साल निकल गए प्यार परिवार,ज्योति और मैं हमने सब कुछ जिया,सब कुछ एक साथ किया हर लम्हे में एक दूसरे के साथ रहे लेकिन प्यार मुक्कमल ना हो सका...ज्योति अपनी जिंदगी में खुश,मैं अपनी समस्याओ में उलझा हुआ खुश हूँ,संदीप भाई घर है,अय्यपन चेन्नई में ट्रेनिंग पर है,आदित्य हॉस्टल है..सब अपने अपने कामो में मस्त है अब हममें से किसी को दारू जिंदगी की पहली दारू नहीं लगती और ना ही मुझे प्यार अब जिंदगी का पहला प्यार लगता है.......
लेखन-विजयराज पाटीदार
Comments
Post a Comment