समाज बदलाव मे खो रहा हैं अजीब हे ना,अगर मे इस मुद्दे पर बात करूँगा तो शायद मुझे Made in china वाली घृणा से देखा जाये पर सत्य और सही कहने मे उतना ही फर्क है जितना सेक्स और फेक्स मे,दोनों शब्दो से काम का औचित्य बदल जाता है।
आज बात करूँगा सेक्स के फेक्स बनने की......
पिछले कुछ समय से अगर देखा जाये तो कमरे की चार दिवारी की सिसकियाँ अब मोबाइल के इनबाक्स मे आ सकती है।
आधुनिकता के तौर मे आज सेक्स को फेक्स की तरह अपने प्रेमी/प्रेमिका के इनबाक्स मे भेजा जा सकता हैं,जिसे मैं तो कम से कम चुतियापा कहूँगा इसमे इतना ही मजा है जितना किसी को सपने मे याद करके बिस्तर खराब करना.....लेकिन फिर भी इसने बहुत ही रोचक प्रेम का विकास किया है..
↣बकायदा इसमें आप बिना पैसा खर्च किये प्रेमी/प्रेमिका को शादी वाली पौशाक से लेकर इनर वियर तक महसूस कर सकते है.
↣ कभी कभी तो हद ही हो जाती है जब सेक्स के दर्द को लिख कर बंया किया जाता है.
↣और जब विश्वास अंतिम चरण पर होता है तब ये पर्सनल पिक्चर के आदान प्रदान तक पहुँच जाता है ..
मानता हूँ समाज की मांग है बदलाव लेकिन युथ किस तरफ जा रही है ये वो इनके इनबाक्स मे बंद हे और हमेशा के लिये बंद ही रह जाते है पर इनकी मानसिकता पूर्ण रूप से गंदी हो चुकी होती है और सत्य है उतना ही जितना आजादी का गलत तरह से उपयोग करना जितना नुकसान बलात्कार से नही उससे कही ज्यादा खोकला कर रहा है ये टेलीफोनिक ओरल सेक्स..
कहीं बार होता हे युवा भटक जाते है कभी रास्तो से तो कभी उद्देश्यो से..ये मिनी स्कर्ट मे भागती जिंदगी और मुँह मे सुट्टा दबाये नव समाज की फैशन मानी जाती हैं..समाज बदलाव चाहता है पर इस तरह पीढ़ियों को खोकला कर के नही।
Written by vijayraj patidar
आज बात करूँगा सेक्स के फेक्स बनने की......
पिछले कुछ समय से अगर देखा जाये तो कमरे की चार दिवारी की सिसकियाँ अब मोबाइल के इनबाक्स मे आ सकती है।
आधुनिकता के तौर मे आज सेक्स को फेक्स की तरह अपने प्रेमी/प्रेमिका के इनबाक्स मे भेजा जा सकता हैं,जिसे मैं तो कम से कम चुतियापा कहूँगा इसमे इतना ही मजा है जितना किसी को सपने मे याद करके बिस्तर खराब करना.....लेकिन फिर भी इसने बहुत ही रोचक प्रेम का विकास किया है..
↣बकायदा इसमें आप बिना पैसा खर्च किये प्रेमी/प्रेमिका को शादी वाली पौशाक से लेकर इनर वियर तक महसूस कर सकते है.
↣ कभी कभी तो हद ही हो जाती है जब सेक्स के दर्द को लिख कर बंया किया जाता है.
↣और जब विश्वास अंतिम चरण पर होता है तब ये पर्सनल पिक्चर के आदान प्रदान तक पहुँच जाता है ..
मानता हूँ समाज की मांग है बदलाव लेकिन युथ किस तरफ जा रही है ये वो इनके इनबाक्स मे बंद हे और हमेशा के लिये बंद ही रह जाते है पर इनकी मानसिकता पूर्ण रूप से गंदी हो चुकी होती है और सत्य है उतना ही जितना आजादी का गलत तरह से उपयोग करना जितना नुकसान बलात्कार से नही उससे कही ज्यादा खोकला कर रहा है ये टेलीफोनिक ओरल सेक्स..
कहीं बार होता हे युवा भटक जाते है कभी रास्तो से तो कभी उद्देश्यो से..ये मिनी स्कर्ट मे भागती जिंदगी और मुँह मे सुट्टा दबाये नव समाज की फैशन मानी जाती हैं..समाज बदलाव चाहता है पर इस तरह पीढ़ियों को खोकला कर के नही।
Written by vijayraj patidar
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