उन्मुक्त समाज का थप्पड़ ... आज बात थोड़ी सी अलग करूँगा क्यों की पिछले कुछ सालो से हमारा समाज एक बीमारी से ग्रसित है और वो है उन्मुक्त समाज का थप्पड़ " जी हां ये एक ऐसा सत्य है जो कानून से कही ऊपर अपने आप को मानता है...पिछले दिनों एक घटना मेरे सामने आयी थी किसी ने चलती बस में पॉकेट मार दी और भी किसी एक लड़के को पकड़ कर समाज के चंद ठेकेदारो ने बीना सोचे समझे अपने बंधे हाथ खोल दिए..सबक सिखाना सही था पर क्या आज बस एक मात्र यही तरीका रह जाता है...असल में गुनाह हमारा है अपने आप को ऐसा बना रखा की इस तरह समाज में बीमारी दौड़ रही है...एक लड़की या लड़का अपने जीवन के यौवन में होते है तब अक्कसर प्रेम करने की गलती इस धूर्त समाज में कर बैठते है..फिर बात आगे बढ़ती है और सामाजिक लोगो की तर्ष्णा फुट फुट कर बाहर आती है, सरे राह मुँह कला कर दिया जाता है,गध...
फेसबुक की वाल पोस्ट से इस सपने की दुनिया तक आना यकीनन बहुत ही मजेदार रहा है जब कॉलेज में हुआ करता था तब शायद अच्छा शायर हुआ करता था..पर जिंदगी मे हुये कुछ अनचाहे बदलावो ने जिंदगी कब एक लेखक की कलम में बदल दी समझ ही नही पाया,जब भी वक्त मिलता है वहीं लिखता हूँ जो मन मे होता हैं कभी लोगों की प्रतिक्रिया देख कर नही लिखा अच्छा या बुरा सब कुछ इस किताब के पन्नों में जिंदगी के खट्टे अनुभवों के साथ परोस रहा हूँ,ये सब कहानियाँ कहीं ना कहीं युवाओं की कहानियों से मेल खाती नजर आयेंगी हर तरह से कोशिश की है..