हाई स्कूल
का प्यार
चौपाटी..
.शायद यही कहते
है ना हम
सब जब दोस्तों
के साथ होते
है अपने महफूज
हड्डे पर..जहा
एक कट चाय
और नाश्ते में
समोसा,कचोड़ी,आलूबड़ा,
या फिर हो
फाफड़ा..यही वो
चौपाटी था देखा
था पहली बार
चिंकी को..हां
चिंकी यही नाम
दिया था मैंने
उसको, पर इत्तेफाक
मुझे भी बहुत
समय बाद पता
चला की चिंकी
की मम्मी भी
उसको चिंकी बुलाती
थी...
क्या बात बे
साले कुछ दिनों
से देख रहा
हूँ तू स्कूल
की छुट्टी के
टाइम पर ही
चाय पिलाने लाता
है..
पी ले यार
पता नहीं कब
ये आखिरी चाय
हो...
चुप कर यार...चल थोड़ा
साइड में आजा
यार...
क्यों..
कुछ नहीं..कुछ ऐसा
कह कर ही
मैंने चिंटू की
बात को नज़रअंदाज़
कर दिया..
वाह..सफ़ेद पटियाला
सूट कितना प्यारा
लग रहा था
उस पर..जब
उसको देखता था
दिल ठहर सा
जाता था...वो
दो पल की
मुलाक़ात अजीब होती
थी समझ नहीं
आता था मुझे
इन २ मिनिट
में क्या देखूं,
उसके लम्भे कमर
तक आते बालो
को या उसकी
बड़ी आँखों को,या फिर
उसके चेहरे की
चमक को..सच
कह तो कभी
जी ही नहीं
भरता था उससे...
ऐसे कभी उसको
क्रिकेट के खेलने
बहाने से देखना
तो कभी बे
वजह उसकी गलियो
में जाना..
देखते ही देखते
पता ही नहीं
चला कैसे ६
महीने निकल गए
दरअसल में डरता
था कही अगर
उसने मेरी चाहत
को अपनाने से
मन कर दिया
और किसी को
कुछ बोल दिया
तो में थो
गया काम "यही
सोचता है एक
युवा जब पहली
हाई स्कूल का
प्यार होता है"..
जैसे ही मैंने
साल के आखिरी
दिनों में कदम
रखा अपने ही
मन से कह
दिया अब तू
आने वाले साल
में अकेला नहीं
रहेगा और चिंटू
से भी तुझे
भी भाभी बोलने
का हक़ इस
हाई स्कूल में
दूंगा..
चिंटू थो डाफोड़
शंख "नादान बच्चे" की
तरह था कुछ
समझ कुछ नहीं
भी..बस हँस
कर बात को
बेपरवाह कर गया..
दिसम्बर से कुछ
ज्यादा ही लगाव
रहा है मुझे
क्यों की मेरे
इश्क़ की "बसंत
ऋतू" फरवरी में नहीं
दिसम्बर में आती
थी..
..
..
स्कूल में जाता
तो बस चिंकी
को देखने के
लिए था पर
कभी कभी क्रिकेट
भी खेल लिया
करता था..उस
दिन खेली तो
एक बॉल ही
थी पर..वो
कहते है न
"मुसीबत मोल लेना"
शायद वही मेरे
साथ भी हुआ..
बॉल चिंकी की क्लास
रूम में चली
गयी थी..ना
जाने क्यों उस
दिन राईट हैंडर
बेस्टमैन,लेफ्ट हैण्ड साइड
में शॉट खेल
बैठा...
देख यार बोल
तुने मारी है
और तु ही
ले कर आएगा..
अरे में क्यों
यार..फील्डर है
न और वैसे
भी ये गली
क्रिकेट थोड़ी है
जो"जिसने मारी वो
लाये"
देख भाई वो
सब ठीक है
पर तब ले
आते जब क्लास
में सर नहीं
होते..वही तु
ही ले कर
आ..
ठीक है सालो
अब तु फंसना
कभी.......................इतना बोल
कर में ग्राउंड
से क्लास की
और चल दिया...
डर भी था
अजीब सा..पर
बॉल थो चाहिए
थी और वो
भी चिंकी की
क्लास में जाने
का मौका था
तो मैंने दिल
को समझ लिया " जो
होता है अच्छे
के लिए ही
होता है"
सर..अंदर आ
सकता हु?
क्यों..
सर वो बॉल
अंदर आ गयी
गलती से..
क्यों बे नालायको
ना तुम पड़ते
हो ना तुम
किसी को पड़ने
देते हो..अगर
यही सब करना
है तो स्कूल
मत आया करो...सर उनका
काम कर रहे
थे और में
अपना "मेरा मतलब
चिंकी को जी
भर कर देखने
का"
ओओओए,,,ओओओए..पाटीदार..
जी..जी...जीई..सर..
बॉल ढूढ ले..
थैंक यू सर...कह कर
में क्लास में
बॉल ढूंढने लगा..और मेरे
लिए दो चार
वही बुरे पात्र
कहानी के फुसफुसाने
लगे...;सुना है
तुने ये वही
है चिंकी के
लिए वेट करता
है..वो चौपाटी
नहीं है यार
वही रहता है
क्लास के बाद..पर चिंकी
ने आज तक
भाव नहीं दिया..
ये सब बाते
में ही नहीं
चिंकी भी सुन
रही थी..
जब मुझे बॉल नहीं
मिली तभी आवाज़
आयी..
..
..
आपकी बॉल..सुनिये
आपकी बॉल यहाँ
है...
ये वही आवाज़
थी जिसे में
सुनना चाहता था..हां चिंकी
की आवाज़..बॉल
लू या उसकी
आवाज़ को सुनता
रहूँ..
क्लास की फुसफुसाहट
और तेज़ हुयी,,,कुछ लडकिया
चिंकी को थो
कुछ मुझे जी
भर के कोस
रही थी...पर
शायद वो और
में इस मिलने
के अहसास में
सब कुछ नज़रअंदाज़
करते जा रहे
थे..चिंकी के
चेहरे को इतना
पास से देखना
मेरे लिए किसी
सपने से कम
नहीं था..
..
..
..
उसने मेरे हाथ
में बॉल दी...और ये
क्या..नहीं समझ
ही नहीं पाया
कुछ सेकंड के
लिए तो..
फिर क्लास से बहार
बॉल ले कर
वापस आ गया
था..पर इस
बार ग्राउंड की
तरफ जाने की
बजाय बॉल ग्राउंड
में फ़ेंक कर..एक ऐसी
जगह की तलाश
करने लगा जहा
मेरे सिवा कोई
ना हो..
हम्म..सही समझे
ऐसी जगह की
तलाश दो ही
सूरत में की
जाती है..लड़की
ने कुछ दिया
हो या फिर
शु शु शु
लगी हो..पर
यहाँ दूसरे वाला
काम नहीं था
क्यों की मैंने
शुशु कहा करना
है इसकी परवाह
आज तक नहीं
की...
में थो एक
कागज़ के टुकड़े
को ले कर
पड़ने की जगह
खोज रहा था
और जब वो
कागज़ का दुकड़ा
किसी आपकी पसंद
की लड़की ने
दिया हो तब
वो किसी प्रेम
पत्र से कम
नहीं होता...
..
.
..
.....मेरे कांपते हाथो ने
मुड़े हुए कागज़
के दुकड़े को
सही करना शुरू
किया था तभी..."क्या kar है यार
विजय लड़की ने
लेटर दिया है
और तु बीना
भगवान् का नाम
लिए खोल रहा
है..ओह्ह्ह सॉरी
विजय..जब कुछ
अच्छा या बुरा
होता है तब
आपकी अंतर आत्मा
आपसे बाते जरूर
करती है"
जय बजरंगबली.."अब मुझे
क्या पता यर
लव लेटर की
टाइम पर कामदेव
का नाम लेना
चाहिए"
इतना अपने आप
से कह कर
मैंने कागज़ को
खोल लिया..अब
एक और झटका
हर बार की
तरह...
..
..
मुझे ये सब
क्लास की लडकिया
चिढ़ाती है प्लीज्
आप मुझे मत
देखा करिये....
..
..कुछ समय तक
तो समझ ही
नहीं आया आखिर
क्या है ये
सब,,,गुस्सा भी
था "क्या प्यार
लोगो के डर
से नहीं होना
चाहिए..या हो
जाये तो बताओ
मत.."फिर सही
है वो सोनी
का सीरियल "कुछ
तो लोग कहेंगे"..
थोड़ा शर्मीन्दा हुआ..अच्छा
ही हुआ उसने
मुझे इस तरीके
से बताया अगर
वो गुस्से में
होती और प्यार
नहीं होता थो
वो मुझे थप्पड़
भी लगा सकती
थी..
मन ही मन
अपने आप को
शाबाशी दी और
कहा "यार कोई
तो बात है
तुझमे जो उसने
गाल लाल नहीं
किये सबके सामने"
ये यही होता
है मोटिवेशन थोड़ा
सा भी पॉजिटिव
पॉइंट मिले समझ
लीजिये आप अभी
भी जंग में
शामिल है"
..
..
अब कागज़ ने
भी श्याही छोड़
दी थी पड़े
पड़े..चौपाटी भी
सुनी थी इंतज़ार
में उसके..दोस्त
भी बोलने लगे
थे कमीने अब
ना तेरी एक
कट याद आती
है ना तेरी
वो चिंकी...
सब समझ जाते
है दोस्त कमीने
ऐसे ही होते
है..कितना भी
कुछ छुपा लो
सब राज़ निकल
ही लेते है...चिंटू ने,,,,,
वैसे चिंकी से कभी
बात हुयी तेरी....
नहीं यार..
चल पहले बता
पार्टी देगा..
पार्टी दी..पर
बात क्या है..?
कुछ नहीं ले..क्या यर
सब कागज़ का
दुकड़ा ही देते
हो..इतना कह
क्र मैंने पड़ना
शुरू किया..
..
..
बुध्धु हो तु
विजय..तुमने पहले
दिया हुआ लेटर
शायद पड़ा नहीं
उसके लास्ट में
नंबर भी लिखा
था..कुछ दिन
तक कॉल नहीं
आया और तुम
दिखे भी नहीं
तो..में समझ
गयी थी तुमने
नंबर नहीं देखा
होगा..इसलिए आज
चिंटू भैया को
देखा थो उनको
रोक कर फिर
से एक बार
दिया और उम्मीद
थी..तुम इस
बार कॉल जरूर
करोगे.....चिंकी
फिर क्या था..फ़ोन निकल
कर सीधे नंबर
डायल किया...दो
रिंग..ड्रिंग ड्रिंग
....
हेल्लो..
hiii
चिंकी बात कर
रही हो?
हां..
विजय बोल रहा
हूँ..
जानती हूँ..प्यार
भी था पहले
से और है
अब भी..पर
प्लीज् कोई सीन
creat मत करना "इंडियन टिपिकल
गर्ल प्यार थो
कर लेती है
पर डर से
कभी बाहर नहीं
आ पाती है..."
मुझे चिंकी मिल चुकी
थी और दुनिया
को मज़ाक बनाने
का एक और
मौका..लेकिन ये
सोच कर कभी
हाई स्कूल का
प्यार नहीं किया
था "कुछ तो
लोग कहेंगे"
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