"मेनफोर्स"
क्या आज हम एक हो जाएंगे...?
ये सवाल मेरे उससे थे जिसने मुझे जीना सिखाया था..असल मे कोई किसी को कुछ नही सिखाता बस ठोकरे खाने से इंसान सिखता हे और बे-वजह दुनिया को कहता फिरता है,उसने मुझे ये सिखाया वो सिखाया।
हाँ आज हम एक हो जाएंगे...ये लफ्ज उसके मुझसे थे।
मैंने भी उत्सुकतावश पुछ लिया "प्रोटेक्शन युस करें या रहने दे"..जवाब मे बस इतना कुछ था"तु जल्दी आ जा मैं खाना बना लेती हूँ साथ मे खायेंगे।
अजीब होता है ना प्रेम का अन-सुलझा सा रिश्ता..जिसके आखिरी छोर का पता भी नही और हम बस जी रहे होते है एक अलग सी दुनियाँ मे।
भैया...भैया..सुनिये...एक स्ट्राबेरी फलेवर दे दीजिए 'और हाँ मेनफोर्स ही देना" ये शर्मींदा होने वाली बात थी ही नही असल मे ये युद्ध मे बचाव के साधन होते है जो अच्छे योद्धा की निशानी होते हैं,ये बात मुझे भी तब पता चली जब मे युद्ध की घोषणा होने के बाद ई मीडिया पर युद्ध कौशल कला को समझ रहा था।
आ गया तु...हममम् "मैंने एक हाथ से सुरझा उपकरण छुपाते हुये दूसरे हाथ से अंगुर,सेंवफल, और चोकलेट से भरी थैली आगे कर दी..तु इतना कुछ मत लाया कर मे खाती नही हूँ सब खराब हो जाते हैं "तो क्या मे हूँ ना यहाँ और वैसे भी थोडे ही है खा सकती है इतने तो।
बोलने मे वो कुछ कम नही थी अक्सर उसकी खामोशी बहुत कुछ बयां कर रही थी।
क्या हुआ बिट्टू तु खुश नही है "चल ठीक है कुछ नही करूँगा ऐसा वैसा"...नही यार बाबू (गले से लगकर मेरे) भैया ने मना कर दिया और अब तुझसे बात भी नही करने का बोला है,,लेकिन मे तुझसे दूर नही रह सकती और घर वाले नही मानेंगे......(घर वाले कम और बाहर वाले ज्यादा होते हे ऐसे समय मे जिनकी खुद का पता नही दूसरो की सिलने आ जाते है) शायद यहीं सोच कर उस मेनफोर्स के पैकेट को संभाल रहा था....अच्छा चल सब छोड मैंने आम का रस,चावल और पनीर की सब्ज़ी,रोटी बनायी है तुझे पसंद है ना मेरे हाथ का पनीर (सच मे एक साल तो उसके पनीर ने मुझे बहुत लाल कीया)...हममम् खाना बनाना तो कोई आपसे सिखे बिट्टू जी (जब भी प्यार पेट के माध्यम से दिल तक आये ना तब निरस ही प्रेम बढ जाता हैं)
अक्सर राते उसकी बाहों मे होती थी ना जाने किस अनजाने रिश्ते को जी रहे थे (दरअसल मे हम मम्मी पापा भी थे 'चीनू' के)।
सुन ना यार बिट्टू घर वाले तो मान ही नही रहे,आगे कैसे कुछ होगा सोचा है तुने...नही यार बाबू तु है ना मुझे पता है तु कुछ अच्छा सोचेगा (यही आदत थी उसकी जब भी कोई बात उसके पक्ष मे करवानी हो वो यही बात बोला करती थी)....मैंने भी तकिये को ऊपर करते हुए बोल दिया "डरता तो मैं हूँ नही पर बात तेरी इसलिए चिंता मत कर जो तु चाहेगी वहीं होगा"अच्छा पर आज कुछ स्पेशल था ना जो हमने प्लान किया था "इतना सुनते ही मेरी बांछे खुल गयी".........
उसकी आंखों मे अजीब सी रंगत थी रात का अंधियारा कमरे मे पसरा पडा था..दरवाजे के बीच से आते उजाले मे धूंधली सी छाया दिख रही थी..धीरे धीरे लबो की मुस्कारहटे बढ़ती गयी बिस्तर की सलवटे भी बाते करने लगी थी...उसके बालो की खुशबू रूह तलक समा रही थी....धीरे धीरे बाते खत्म हो चुकी थी बस अब हम चारों (बिट्टू..मैं..अंधेरा और खामोशी) एक हो रहे थे...दोनों डरे हुए थे पहली बार सब कुछ हो रहा था मैंने बस कुछ वीडियो देखे थे 'पोर्न साइट" पर और बिट्टू का पता नही "शायद देखे भी हो"...
तु वो लाया..?
क्या...।
अरे वो नही होता जिससे 'चीनू' अभी नही हो.. ?
मैंने भी मजाक मे जवाब दिया "साला चाहता कहां हे वो मामा बने"
ठीक है रहने दे मैं सो रही हूँ...बिट्टू लाया हूँ और वो भी स्ट्राॅबेरी।
इसमें भी फ्लेवर होते है(मासूमियत इतनी थी कि मैं जवाब मे बस सिर हिला सका)...
मैं अपने चरम पर था और शायद वो भी आवाज 10 बाय् 15 के कमरे से बाहर ना जाये इसलिए उस रात हमने अपने लबो की दूरियाँ कम नही की असल मे "मेनफोर्स की पावर" हम दोनों समझ चूके थे.......
जिंदगी का पहला "मेनफोर्स" बहुत ही रोचक रहा...कुछ पल जो सुरक्षित रह जाते है वो बस मेनफोर्स की ही काबिलियत हैं जब जिंदगी मे नज़दीकीयां प्यार मे बढने लगे तब थोड़ी सी जगह अपनी पाॅकेट मे मेनफोर्स को देना शुरू कर दे..क्यों की प्रेम पल ढूँढता है कमजोरी नही..........
Written by vijayraj patidar
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