वक्त बे-वक्त जब भी मन करता है कुछ ना कुछ लिख लेता हूँ।
आज सुबह से लेकर शाम तक सबसे ज्यादा माँ याद आयी,
जेब मैं फूटी कोढी भी नही शहर भी बडा और अनजाना,
पेट की बढती भूख,रास्तो का भटकना,पैदल सफर और मंजिल,
का दूर से दूर होते चले जाना, दरअसल मे जितना दुख इन सब मे,
नही उससे कही ज्यादा "माँ" को याद करके रोया हूँ आज और बस,
जो याद आया वो ये था- "माँ-इससे बेहतर जीवन मे कुछ नही"
माँ धरा पर एक सुंदर सी परिचायक है"
जैसे संसार के सागर मे अनमोल मोती है।।
जिसने साथ पाया उम्र भर माँ का।
दरअसल मे वो किस्मत का धनी है।।
आंचल ममता का इत्तेफाक नही कोई।
असल मे ये ही प्रभु के साथ होने का अहसास है।।
दुधन के वक्त बेटे की लात सह लेती है।
पुत्रवधू की डांट सह लेती है।
असल मे माँ चुप रहती है,वजह बस इतनी है
आज भी हम उस माँ के लिये वही हे जो उसकी कोख मे थे।
जब भी नाराज होते है हम,तो आकर मनाया करती है।
दरअसल वो अपने गम को हमसे छुपाया करती हैं
सारी गुलक तोड दिया करती थी बजत की,हमारी खुशियों के लिये।
जब भी बाजार जाया करती थी,खिलौने वो ले आया करती थी।
मैं उसको हामिद वाला एक चिमटा ला कर ना दे सका।
वो अपनी सब खुशियाँ समेट कर मेरे लिये जिया करती थी।।
असल मे वो माँ ही है जो हमे कभी बडा नही होने देती है।।
माँ का स्तनपान आज भी मुझे याद आता हैं।
समय बीत गया बचपन का,पर माँ का वो चेहरा रोज याद आता हैं।।
("संघर्ष-: विजयराज पाटीदार)
उम्दा प्रयास
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