Skip to main content

'उत्साह'

नमस्कार पाठकों आपका स्वागत हैं मोटीवेशनल फंडे विजयराज पाटीदार के साथ आज फिर आपके लिये कुछ नया करने की कोशिश कर रहा हूँ असल मैं उन सफल लोगों मे से एक हूँ जो कभी हार नही मानता लाखों का नुकसान सर पर कर्ज बोझ पर आँखो मे आज भी सपने देखने और सच करने की काबिलियत लिये रोज सुबह एक नयी देखता हूँ उठता हूँ भागता हूँ  पर हार मानने का सवाल ही नही जहन मे उठता।
और मैं आपके लिये भी बस एक उम्मीद लाने की कोशिश करूँगा।
अब शुरू करता हूँ रोज की सीख से दरअसल मैं फाइनेंससलाहकार रहा हूँ पर कहीं बार आपको वो नही मिलता जो आप चाहते हो।
एक साल बिजनेस करने के बाद समझ आया जो छोटी छोटी बाते मैंने ग्राहक को फायदा पहुँचाने की वजह से नजर अंदाज की वो आज बहुत बडी समस्या हैं पर देर से ही सही अब मैंने उन बातो पर काम करना शुरू कीया और उस समस्या से सीखने की कोशिश करता हूँ।
आज एक युवा के लिये सबसे जरूरी हैं किसी से प्रेरणा लेना वो चाहे आप अपने आस-पास के किसी भी माहौल से सीख सकते हो।
मैं बस आपको यहीं कहूँगा आप अपने आइडिया को जमीन पर लाने की कोशिश करो।
सफलता या असफलता के बारे मे अपने पहले लेख मे लिख चुका हूँ।
आगे आपके जब जुड़ने का प्रयास करूंगा अपने नये लेख"बिजनेस कैसे शुरू करें" मे तब तक आप मेरे भाई दीपक पाटीदार के लेख "पुरानी डायरी" पढ कर उसके नीजी जीवन की बातो को सुंदर अहसास के साथ जान सकते हैं।


धन्यवाद
एम.बी.ए-:विजयराज पाटीदार

Comments

Popular posts from this blog

आत्महत्या या ह्त्या..?

जीवन ऊपर वाले का दिया हुआ सबसे अनमोल तौहफा है फिर ना जाने क्यों इस अनमोल तौह्फे की कद्र नहीं कर पाते दरअसल में बात जीवन की नहीं बल्कि इस जीवन में हमसे जुड़े लोगो की भी है क्यों कोई कैसे अपने आपको ख़त्म कर लेता है क्या उसको उससे जुड़े किसी इंसान की जरूरत ने नहीं रोका होगा..ये तब सोचता था जब मैंने जिंदगी को इतने करीब से नहीं जाना था.. असल में बहुत कुछ होता है जो हमे रोकता है इस तरह करने से पर इन सब बातो से भी ऊपर वो है जो अब तक हम जिंदगी जीने के लिए सहते आये..मान,सम्मान,पैसा,भविष्य सब कुछ जब लगता है सुरझित नहीं है तब इंसान अपने आप को जहर की गोलियों में,फांसी के फंदे में,धार की गोद में ढूंढता है..इस वजह से इस कहानी को नाम दिया है..आत्महत्या या हत्या..? हत्या इसलिए भी क्यों की ये समाज द्वारा,परिवार द्वारा दी गयी मौत ही तो है जो जिंदगी हारने  पर मजबूर करती है... बात पिछले दिनों की है दो मासूम बच्चियां सारी रात बिलखती रही अपनी माँ की बंद आँखों को खोलने की कोशिश करती रही..ये समाज का दिया उपकार ही तो था, या फिर खुद का जिंदगी से हार जाना..वो चली गयी है अब ये समाज के सामने का पह...

"नमक स्वादानुसार"..बस टाइटल चोरी का है.

आप सोच रहे होंगे ये जनाब अपनी कहानी का टाइटल निखिल सचान की "नमक स्वादानुसार" से चुरा कर लाये है,तो बिलकुल सही सोच रहे है,क्या है ना मैं परवाह नहीं करता क्या कहाँ से आया,और मैं कहाँ से लाया और वैसे भी किसी महान पुरुष ने कहा है अगर कोई चीज कुछ सिखाती है तो उसे अपने जीवन में उतार लो..पर मैंने तो चुरा लिया क्यों मुझे नमक स्वादानुसार ही लगता है और शायद आपको भी,दरअसल मैं कोई महान लेखक तो हूँ नहीं लेकिन जब भी दिमाग के कीड़े मुझे बैचैन करते है मैं अपने आप को लिखने के लिए कहता हूँ.. सुबह का समय था.. रोज की तरह ७.४० पर उठा लेकिन मेरे आलस की अंगड़ाई मेरे वयस्त समय पर चद्दर डाल कर सोने को मजबूर कर रही थी..१० मिनिट और सो लिया जाय आप मैं हम सब ऐसे ही मन को चुतिया बना कर सोने की कोशिश करते है लेकिन ये १० मिनिट कब ३० मिनिट में बदल जाते है पता ही नहीं चलता..निचे रूम से उठ कर यही सोचता आ आ रहा था "अनु आज मुझे उठाने क्यों नहीं आया?शायद आया भी हो लेकिन मैं उठा नहीं हो?अगर में उठा नहीं तो वो देखते ही चिल्लायेगा? ये सवाल खुद से पूछ कर खुद से जवाब मांग रहा था..लेकिन ऊपर रूम में जा कर देखा तो...

भ्रमण किस्सों का..

अलसुबह उठना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है..ऐसा डॉ लोग कहते है लेकिन हम मानते कहा है ये बात तब और बिगड़ जाती है जब मेरे जैसे दुनिया की चिंता “भाड़ में जाये वाले” विचारों से करते है..खैर २० सितम्बर २०१७ यानी अभी एक हफ्ते पहले बीना डॉ की सलाह लिए अलसुबह ६.०० बजे उठना पडा,बात असल में कुछ ऐसी है की हमने प्लान किया था कंही बहार जाने का,घुमने का,मौज मस्ती करने का,हमने से मतलब मैं और अनुराग,जी हां अनुराग वही है जिनका जिक्र में अपने एक छोटे लेखन “नमक स्वादानुसार-बस टाइटल चोरी का है” में कर चुका हूँ..हां तो सीधे अपने यात्रा व्रतांत पर आता हूँ..सुबह उठे तो मौसम साफ़ नहीं था और ये सब असर था पूर्व में बने कमजोर मानसूनी दबाव का जिससे मध्य-प्रदेश और आस पास के प्रदेशो में भारी बारिश की चेतावनी दी गयी थी..फिर भी हमने सोचा जाना जरूरी है क्योंकि दो दिनों से जाने को जो ठीन्डोरा जो हमने बाकी तीन ना जाने वाले साथियों के सामने पिटा था वो बाहर हो रही बारिश का मज़ा लेकर हमे मन ही मन ये जता और बता रहे थे की “लो,ले घुमने का,घंटा पानी अब कंही ना जाने दे तुमको”..लेकिन हमारे विचारो ने सांठ-गाँठ कर ली थी..हमने स...